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________________ बिनपूना' नामक पूनाओं में वृत्यनुप्रास का व्यवहार उल्लेखनीय है। उकष्ट पूजारपिता वृन्दावन विरचित 'श्री शांतिनाथ बिनपूजा" में अस्यानुप्रास और 'श्रीपवमान जिनपूना" में श्रुत्यानुप्रास का प्रयोग परिलक्षित है। बीसवीं शती के पूजाकषि विनेश्वरवास कृत 'श्री चन्द्रप्रभ पूजा" में, बोलतराम रचित 'श्री पावापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा और नेम प्रणीत 'श्री अकृत्रिम चेस्यालय पूजा में छेकानुप्रास के अभिवर्शन होते हैं। इस शती के मन्य पूजा प्रणेता हीराचंद ने बृत्यनुप्रास का प्रयोग सफलतापूर्वक किया है।' १. दशांग धूप धूम्रपन्ध भगवन्द धावही । श्री अनन्तनाथ जिनपूजा, रामचन्द्र, संगृहीत य-राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्ग, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ १०५। २. यह विघ्न मूल-तह खंड खंड, चित चिन्तित आनन्द मंड मंड । -श्री शांतिनाथ जिनपूजा, वृन्दावन, संगृहीतग्रन्थ-राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ ३. शतक बण्डमच खण्ड, सकल सुर सेवत आई। श्री पदमप्रभु जिनपूजा, वृन्दावन संग्रहीत ग्रंप-राजेश नित्य पूजा पा संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ ८२ । ४ चारू चरित चकोरन के चित पोरन चन्द्रकला बहुसूरे। -श्री चन्द्रप्रभु जिन पूजा, जिनेश्वरदास , संगृहीतग्रंथ-जंन पूजापाठ संग्रह, भागचना पाटनी, नं. ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७ पृष्ठ १००। ५. अजर अमर अविनाशी शिव बल वर्णी 'दौल' रहे सिर नाय । -श्री पावापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा, दौलतराम, संगृहीतग्रन्थ-जैन पूजा पाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७ पृष्ठ १४६ । जय अमल अनादि अनन्त जान, अनिमित जु अकीर्तम अचल पान । ---श्री अकृत्रिम चैत्यालय पूजा, नेम, संग्रहीतमय जैन पूजा पाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २५३ । आनिय सुरसंगा, सलिल सुरंगा, करिमन चंगा, भरि भगा। -श्री सिद्ध चक्र पूजा, हीराचन्द, मंगृहीत प्रप-बृहजिनवाणी संग्रह, सम्पादक व रचयिता-पं० पन्नालाल वाकलीवाल, मदनगंज, किशनगढ़, सितम्बर १९५६, पृष्ठ ३२८ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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