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________________ करने पर सामनता है जिसका अर्थ है पापों से तरना तथा हि' बारी 'कर' सम्ममा मयति करोतीति करः । इस प्रकार तीर्थस्य कर: तौकर। इस प्रकार तीर्थकर का अर्थ स्वयं अर्थात् दूसरों को पार करने वाला है। बनदर्शन में संसार-सागर को स्वयं पार करने तथा कराने वाले महापुस्ख को तीर्थकर कहा गया है। ऐसी आस्मा तीर्थकर नाम कर्म के उदय तीर्थकर होती है। तीबंकर बनने के संस्कार षोड्स कारक रूप अत्यन्त विसर भावनामों हारा उत्पन्न होते हैं। उनके पांच कल्याणक सम्पन्न होते हैं।' जैनधर्म में चौबीस तीर्थंकरों का उल्लेख है।' मनलिखित लेखनी में प्रत्येक का परिचय प्रस्तुत करना हमें अभीप्सित है। (१) ऋषभनाथ (श्री ऋषभदेवपूजा) भगवान ऋषभनाय प्रथम तीर्थकर हैं अस्तु इन्हें आदिनाथ भी कहते हैं। इनके पिता का नाम नाभिराय और माता का माम मदेवी था। मापका १. 'तीर्थकृतः संसारोत्तरणहेत भूत्वात्तीर्थमिवतीर्थमागमः । तस्कृतवतः। समाधिशतक ।२।२२२।२४, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग २, जिनेन्द्रवर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, स० २०२८, पृष्ठांक ३७२।। २. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग २, जिनेन्द्रवर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, स. २०२८, पृष्ठांक ३७१ । ३ ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पदम सुपार्श्व जिनराय । चन्द पुहुप शीतल श्रेयांस जिन, वासुपूज्य पूजित सुरराय ।। विमल अनन्त धर्म जस उज्ज्वल, शांति कुषु अर मल्लि मनाय । मुनि सुव्रत नमि नेमि पार्य प्रभु, वर्द्धमान पद पुष्प चढ़ाय ।। -बालबोध पाठमाला, भाग १, पं० रतनचन्द भारिल्ल, प्रकाशकपंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-४, बापू नगर, जयपुर, श्रुतपंचमी २९ मई, १९७४, पृष्ठ १०। ४. श्री ऋषभदेवपूजा, मनरंगलाल, संगृहीत ग्रंथ-सत्यार्पयश, प्रकाशक • शिखरचन्द्र जैन शास्त्री, जवाहरगंज, जबलपुर, म.प्र., चतुर्व रण, अगस्त १९५० ई०, पृष्ठ ५।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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