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________________ ( १५० ) (१) अकृत्रिम चैत्यालय - ये चंस्यालय चारों प्रकार के देवों के भवन, प्रासादों व विमानों तथा स्थल-स्थल पर मध्यलोक में विराजमान है । (२) कृत्रिम चैत्यालय -ये मनुष्यकृत हैं तथा मनुष्य लोक में निर्मित किए गए हैं। अकृत्रिम त्यालय - चैत्यालय पवित्र स्थान हैं। यहाँ मध्यलोक के जीव नहीं पहुँच सकते । किन्तु इन्द्रादि देव यहाँ आकर इन संस्थालयों में विराजमान जिन प्रतिमा का स्तवन करते हैं। ये चैत्यालय नंदीश्वरद्वीप में हैं। ये सभी स्थान तीर्थ है अतएव इनकी वंदना की गई है । श्रनंदीश्वरद्वीप की पूजा ' तथा श्री अकृत्रिम चैत्यालयों की पूजा नामक रचनायें इसी तीर्थ भाव का परिणाम है । आचार्य कुन्दकुन्द ने लिखा है कि- कैलासपर्वत से ऋषभनाथ, चम्पापुर से वासुपूज्य, गिरनार से नेमिनाथ, पावापुर से महावीर तथा शेष बोस तीर्थंकर सम्मेदशिखर से मोक्ष गए हैं उन सभी को नमस्कार किया है।" पूजाकार ने सिद्धक्षेत्र की पूजा नामक काव्य रचकर तीर्थ क्षेत्रों की वंदना की है। भी निर्वाणपूजा इसी से सम्बन्धित है ।" चौबीस तीर्थंकर (श्री चतुर्विंशति तीर्थ कर समुच्चय पूजा ) * ४ तरति पापाविक यस्मात तत् तीर्थ । 'ति' धातु से उणादि प्रत्यय १. श्री नंदीश्वरद्वीपपूजा, यानतराय, संगृहीत ग्रंथ - राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, सन् १९७६, पृष्ठ १७१ । २. कैलासे वृषभस्य, निवृति महावीरस्य पावापुरं - चम्पायां वसुपूज्य तुम जिनपतेः सम्मेद शेले हंताम । शेषाणामपि चौर्जयन्त शिखरे नेमीश्वर स्थार्हत्य निर्वाणावनयः प्रसिद्ध विभवाः कुर्वन्तु तें मंगलम् | - मंगलाष्टक, ज्ञानपीठ पूजांजलि, भारतीय ज्ञानपीठ, १९६९ ई०, छंदांक ६, पृष्ठांक ५ । ३. श्री निर्वाणक्षेत्र पूजा, खानतराय, संगृहीतबंध -- राजेश नित्यपूजापाठ सग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६ ई०, पृष्ठ ३७३ । ४. हीराचंद, श्री चतुविशति तीर्थकर समुच्चयपूजा, संगृहीत ग्रंथ-नित्य नियम विशेषपूजन संग्रह, सम्पा० व प्रकाशिका -० पतासीबाई जैन, गया (बिहार), पृष्ठ ७१
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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