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________________ (fre) - एक विशेष अभिप्राय के लिए किया जाता है। पूजा प्रसंग में जन्म, मृत्यु के विनाशार्थं प्रासुक जल का अध्र्य आवश्यक है। जैन-हिन्दी-पूजासंत ज्ञानी तथा जनंत शक्तिशाली, जम्म जरा मृत्यु से परे, स्वयं मुक्त तथा मुक्तिमार्ग के निर्देशक महान परमात्मा को अपने आत्मा पर लगे कर्ममल को साक करने के लिए पूजा में जल का उपयोग किया जाता है ।" जैन- हिन्दी-पूजा-काव्य में इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ व्यंजना में हुआ है। अठारहवीं शती के पूजा कवि धानतराय ने 'श्री देवशास्त्रपुरु पूजा' नामक रचना में 'जल' शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में सफलतापूर्वक किया है।" उन्नीसवीं शती के कविवर वृन्दावन द्वारा रचित 'श्री वासुपूज्य जितपूजा' नामक कृति में जल शब्द का प्रयोग द्रष्टव्य है ।" बीसवीं शती के पूजाकार राजमल पर्वया विरचित 'श्री पंचपरमेष्ठी १. ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्री मज्जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा । - जिनपूजा का महत्व, श्री मोहनलाल पारसान, सार्द्धं शताब्दि स्मृति ग्रंथ, सार्द्ध शताब्दी महोत्सव समिति, १३६, काटन स्ट्रीट, कलकत्ता-७, सन् १६६५, पृष्ठ ५४ । २. मलिन वस्तु हर लेत सब, जल स्वभावमल छीन । जासों पूजों परमपद, देवशास्त्रगुरु तीन || ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो जन्म जरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । -श्री देवशास्त्रगुरु पूजा, यानतराम, संगृहीतग्र थ राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, सन् १९७६, पृष्ठ ४० । C ३. गंगाजल भरि कनक कुम्भ में प्रासुक गंध मिलाई । करम कलंक विनाशन कारन, धार देत हरवाई ॥ ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । - श्री वासुपूज्य जिनपूजा, वृंदावन, संगृहीतग्रंथ-ज्ञानपीठ - पूजांजलि ruber प्रसाद गोयलीय, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्डरोड, वाराणसी, प्रथम संस्करण १६५७ ई०, पृष्ठ ३४६ । ? 5 S
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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