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________________ ( १२५ ) का प्रतीक होता है ।' अतएव अध्ये सर्वथा अखाद्य होता है । जन-हिन्दी-पूजाकाव्य में इस कल्पना का मौलिक रूप सुरक्षित है । जैनमक्ति में पूजा का विधान अष्ट-द्रव्यों से किया गया है। पूजा-काव्य में प्रयुक्त अष्ट-द्रव्य अग्रांकित हैं, यथा--- १. जल २. चन्दन ३. अक्षत ४. पुष्प ५. नंबेच ६. वीप ७. धूप ८. फल इन द्रव्यों का क्षेपण अलग-अलग अष्ट फलों की प्राप्ति के लिए शुभ संकल्प रूप है। यहाँ पर इन्हीं अष्ट द्रव्यों का विवेचन करना हमारा मूलाभिप्रेत है । जल - 'जायते' इति 'ज', जीयते' इति 'ज' तथा 'लीयते' इति 'ल' | ज का अर्थ 'जन्म', ल का अर्थ 'लीन' । इस प्रकार 'ज' तथा 'ल' के योग से जल शब्द निष्पन्न हुआ जिसका अर्थ है- जन्ममरण । लौकिक जगत में 'जल' का अर्थ पानी है तथा ऐहिक तृषा की तृप्ति हेतु व्यवहुत है। जैन दर्शन में 'जल' का अर्थ महत्वपूर्ण है तथा उसका प्रयोग १. वार्धारा रजसः शमाय पदयोः सम्यक्प्रयुक्तार्हतः सद्गंधस्तनुसोरभाय विभवाच्छेदाय संत्यक्षता: । यष्टुः स्रग्दिविजस्रजेचरु रुमाम्याम्यायदीप स्विषे धूपो विश्व गत्सवाय फलमिष्टार्थाय वार्घाय सः । अर्थात अरहंत भगवान के चरणकमलों में विधिपूर्वक चढ़ाई गई जल की धारा पूजक के पापों के नाश करने के लिए उत्तम चन्दन शरीर में सुगंधित के लिए अक्षत, विभूति की स्थिरता के लिए पुष्पमाला, नैवेद्य लक्ष्मी पतित्व के लिए, दीपकान्ति के लिए तथा अर्घ्य अनर्घ्य पद की प्राप्ति के लिए होता है । -- सागारधर्मामृत, आशाक्षर, प्रकाशक- मूलचंद किसनदास कापड़िया, सूरत, प्रथम संस्करण बीर सं० २४४१, श्लोक संख्या ३०, पृष्ठ १०१ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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