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________________ भूमिका देश की सभी प्रमुख भाषाओं में निबद्ध होने के कारण जैन साहित्य की विशालता का अनुमान लगाना सहज कार्य नही है उसका अधिकांश भाग अप्रकाशित है, अनदेखा है साथ में अचचत भी है । जब हम राजस्थान के ग्रंथालयों को देखते हैं तो उनमें सैकड़ों हजारो पाण्डुलिपियों के दर्शन होते हैं । अभी तक तो पचासों ग्रंथालय ऐसे भी हैं जिनका सूचीकरण भी नहीं हो पाया है इसलिए इन शास्त्र भण्डारों में कितने अमूल्य ग्रंथ बिखरे पड़े हैं इसके बारे में कौन क्या कह सकता है ? इसके अतिरिक्त जैनाचार्यो एवं विद्वानों ने सभी विषयों पर लेखनी चलाई है। उन्होंने अपने गम्भीर ज्ञान को अपनी कृतियों में उड़ेल कर रख दिया है इसलिए जैन साहित्य की गहनता के बारे में 'नेति नेति' कहने के अतिरिक्त और कहा भी क्या जा सकता है ? जैन धर्म निवृत्ति प्रधान धर्म है । सर्वथा निष्परिग्रही बने बिना जीवन ar अन्तिम लक्ष्य 'निर्वाण' को प्राप्त ही किया जा सकता है । उसका दर्शन चिन्तन, आचार एवं व्यवहार सभी मानव मात्र को त्याग की दिशा में मोड़ने वाले हैं इसलिए जो निष्परिग्रही बनकर निर्वाण प्राप्त करता है अथवा निष्परिग्रही जीवन में प्रवृत होकर मोक्ष मार्ग का पथिक बन जाता है उनका जीवन स्तुत्य है । उनका दर्शन, स्तवन, अर्चन आदि सभी हमारे लिए अभीष्ट है । अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु ये पंचपरमेष्ठी कहलाते हैं क्योंकि ये सभी निवृतिपरक जीवन अपना चुके हैं । जगत से उन्हें कोई लेना देना नहीं है । उनमें भी सिद्ध परमेष्ठी मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, अर्हत् परमेष्ठी को मोक्ष की उपलब्धि होने वाली है तथा आचार्य, उपाध्याय एवं साधु मोक्ष मार्ग के पथिक बन चुके हैं वे अपने वर्तमान भव से वापिस गृहस्थी में बाने वा नहीं हैं। उन्होंने मोक्ष मार्ग अपना लिया है इसलिए जो मोक्ष चले गए हैं, जो जाने वाले हैं और जिन्होंने यात्रा आरम्भ कर दी है वे सभी हमारे लिए वन्दनीय हैं, पूजनीय हैं । गृहस्थ अवस्था जिन्हें जैनधर्म में श्रावक की संज्ञा दी है उनके जीवन के लिए अपने नियम हैं, विधि है तथा दिशानिर्देश हैं इन सब का उद्देश्य जीवन को शुद्ध, सात्विक एवं सरल बनाना है। उसे मोक्ष पथ का पथिक बनाना है ( vi)
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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