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________________ ( १०५ ) इस प्रकार अठारहवीं शती में प्रणीत पूजा काव्य में भक्ति भावना की को स्थापना हुई है उसका विकास हमें १२ वीं शती में रचित हिम्दी जैन-युका म में परिलक्षित होता है। इस शताब्दि में पूजा के अनेक नवीन भावार मुखर हो उठे हैं। इन सभी पूजाओं का मन्तव्य लौकिक उमन और reater अध्यात्मिक उत्कर्ष की स्थापना करना है । दूसरी विशेषता यह है कि इस काल के कवियों द्वारा विविध-सुखी भक्ति को आधार मूलक शक्तियों के अतरंग का सूक्ष्म उद्घाटन भी हुआ है । इस दृष्टि से कयामक और अतिशय तथा सिद्धक्षेत्र को पूजाएँ उल्लेखनीय हैं ! जैन हिन्दी पूजा काव्य धारा का उत्तरोत्तर उत्कर्ष हुआ है। बीसवीं शती मैं प्रस्ताविक भक्त भावना का पोषण तो हुआ ही है साथ ही अनेक नवीन तत्वों पर भी पूजाएं रची गई हैं। उन्नीसवीं शती की भाँति सिद्ध क्षेत्रों पर भात पूजा, श्री सम्मेदाचल पूजा, श्री लण्डगिरि पूजा, श्री चम्पापुर पूजा, श्री पावापुर पूजा तथा श्री सोनागिरि पूजा इस काल की अभिनव कृतियाँ हैं जिनके द्वारा तीर्थंकर भक्ति का पोषण हुआ है। शास्त्र भक्ति के मन्तात इस काल में 'श्री तस्वार्थ सूत्र पूजा' कवि को सर्वथा मौलिक उभावना है। क्षेत्र भक्ति के अन्तर्गत श्री सम्मेद शिखर पूजा का बड़ा महत्व है। यह क्षेत्र हजारी बाग, पारसनाथ हिल, ईशरी में स्थित है ।" इस क्षेत्र में अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनवन नाथ, सुमति नाथ, पद्माम, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पवन्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ शांतिनाथ, कुम्यनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, सुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ तथा पार्श्वनाथ नामक बीस तीर्थंकर मुक्ति को प्राप्त हुए हैं।" तीर्थकरों के साथ अन्य व्यासी करोड़ चौरासी लाख पंतालीस हजार सात सौ विद्यालीस मुनिजन सिद्ध पद प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त हुए हैं।' यह सिद्ध क्षेत्रों में सबसे बड़ा -जैन तीर्थ और उनकी यात्रा, श्री कामता प्रसाद जैन, भारतीय दिगम्बर जैन परिषद् दिल्ली, प्रथम संस्करण १९६२ ई०, पृष्ठ १६ । 1 13- श्री सम्मेबाचल पूजा, जवाहरलाल, बृहजिनवाणी संग्रह, सम्पादक- पंडित पन्नालाल वाकलीवाल, मदनगंज, किशनगढ़, प्रथम संस्करण १६५६ ई०, पृष्ठ ४७२ से ४८५ । 3 ३- श्री सम्मेदाचल पूजा, जवाहरलास, बृहजिनवाणी संग्रह, सम्पादक पंडित पन्नालाल वाकलीवाल, मदनगंज, किशनगढ़, प्रथम संस्करण १६५६ ई० पृष्ठ ४८५ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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