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________________ (१ ) करता है के सांसारिक सम्पदा तो प्राप्त होती ही कला शिक्षा की भी प्राप्ति होती है। सकार अठारहवीं शती में तीर्थक्ति का विकासात्मक सोली में संचित तीर्थकर पूजाकाम्य में परिलक्षित होता है। जी स्वक पूजास युग की अभिनय देन है मस्तु इस कि काम मी मुभरही है साधारण जन-कुल में भी तीर्थकर भक्ति की महिला सास्वचार हुमा है फलस्वरूप उसमें समाचार की प्रेरणा अपनाई है। तबाही नहीं इसी के पूजा प्रणेतानों ने सिख क्षेत्रों अर्थात् मन पवित्र स्थान पर आपत पूनाएं रखी हैं जिनसे तीर्थराव मुक्ति को प्राप्त हुए हैं। सटिभी किरिनार सिवक्षेत्र पूजा तथा श्री सम्मेद शिखर पूजा विशेष -- - .गुरुमक्ति का सम्पादन श्री सप्तषिपुजा के माध्यम से सम्पन्न हुमा है। कपिपर मनरंगलाल विरचित 'भी सप्तर्षि पूजा' इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कविवर मल्ल द्वारा क्षमावाणी पूजा का प्रणयन भक्त्यात्मक परम्परा में अपना विशेष महत्व रखती है । अठारहवीं शती में श्री मालक्षण धर्मपूजा के अन्तर्गत ममा विषयक अवश्य चर्चा हुई थी किन्तु यहाँ कवि ने 'श्री सामावाणी पूजा' में सम, धर्म की महिमा का प्रवर्तन किया है। इससे जीवन में रलत्रय को मध्य भावना उत्पन्न होती है जो मोल-मार्ग में साधक हैं।' १-पूजा जिन चौबीस सुपूज्य कल्याण की। पड़े सुनै दै कान सुरम शिवदान की। सुत-बारा धन-धान्य पायसम्पत्ति भली। नार-सुर के सुख भोसि करें शिवपुर रली ।। -श्री मोक्ष कल्याणक पूजा, कमलनयन, हस्तलिखित ग्रंथ, जनशोध अकादमी, आगरा रोड, अलीगढ़ में सुरक्षित । २-श्री सप्तऋषि पूजा, मनरंगलाल, राजेम नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण सन् १९७६, पृष्ठ १४० । ३-अंग मा जिनधर्म तनों दृढमूल बखानों । सम्यक् रतन संभाल हृदय में निश्चय जानों । तज मिथ्या विष-मूल और चित्त निर्मल ठानो। जिन धर्मी सो प्रीत करो सब पातक मानों॥ रतनत्रय गह भविक जन जिम आशा सम बालिए। निश्चय कर माराधना करम रास को जालिए। -बी क्षमावाणी पूजा, कविमल्लजी, ज्ञानपीठ पूजांजलि, भारतीय भानपीठ, काराणसी, प्रथम संस्करण १९५७ ६०, पृष्ठ ४०३ ॥
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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