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________________ ( १०२ ) इस भक्ति भावना का शुभ परिणाम दुःख से निवृत्ति और सिंथ पद में प्रवृति उत्पन करना है। तीसवीं शताब्दि में पूजा-काव्य रूप को अवस्थात्मक अभिव्यञ्जना केलिए अपेक्षाकृत अधिक अपनाया गया है । इस शती में अठारहवीं शती में प्रणीत 'पूजा में अभिव्यक्त भक्ति सुरक्षित रही है। विशेषता यह है कि इस सती के कवियों द्वारा बीबीस तीर्थंकर पूजा का प्रणयन हुआ है।' समवेत रूप से water fried की पूजा के अतिरिक्त वैयक्तिक रूप से भी प्रत्येक तीर्थंकर के नाम पर आधृत अनेक कवियों द्वारा तीर्थंकर पूजाएं रची गई हैं किनमें तीर्थंकर भक्ति का सम्यक् विवेचन हुआ है । जैन भक्त समाज में 'कर नेमिनाथ, पार्श्वनाथ,' तथा महावीर' विषयक पूजाओं का प्रचलन सर्वाधिक है। जिस मंदिर की मूल प्रतिमा जिस तीर्थंकर की होती है, उस मंदिर में उसी तीर्थंकर की पूजा का माहात्म्य बढ़ जाता है। नित्य पूजा विधान के लिए चौबीस तीर्थकर की समवेत पूजा का क्रम प्रायः अपनाया गया है । तीर्थकरों के जीवन की प्रमुख पाँच घटनाएँ वस्तुतः कल्याणक कहलाती हैं। गर्म, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष इन पाँच कल्याणकों पर आवृत पूजा१- बुषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, पदम, सुपार्श्व जिनराय । चन्द्र पहुप, शीतल, श्रेयांस, नमि, बासु पूज्य पूजित सुर राय ॥ बिमल अनन्त घरम जस उज्ज्वल, शान्ति कुंथु भर मल्लि मनाय । मुनि सुव्रत नमि नेमि पार्श्व प्रभु, वर्तमान पद पुष्प चढ़ाय ॥ -- श्री समुच्चय चौबोसी जिन पूजा, सेवक, बृहजिनवाणी संग्रह, मदनगंज, feetगढ़, प्रथम संस्करण १६५६, पृष्ठ ३३४ । .२ - श्री नेमिनाथजिन पूजा, मनरंगलाल, सत्यार्थयज्ञ, सम्पादक व प्रकाशकपंडित शिखरचन्द्र जैन शास्त्री, जवाहरगंज, जबलपुर ( म०प्र०), १६५० ई०, पृष्ठ १५३ । ३- श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बब्तावररत्न, ज्ञानपीठ पूजांजसि, भारतीय ज्ञानपीठ, बनारस, प्रथम संस्करण १९५७ ई०, पृष्ठ ३६५ । ४- श्री महावीर स्वामी पूजा, वृंदावनदास, राजेशनित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १९७६ ई०, पृष्ठ ११२ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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