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________________ में कविवर पदावनवास विरचित म० महावीर पूजा का भी अतिशय व्यवहार प्रचलित है। तीर्थंकर भक्ति में देव-राजा-रंक सभी कोटि के पूजक भक्ति भाव से पूजा करते हैं और भवताप को नष्ट कर अतीन्द्रिय आनन्द को प्राप्त करते हैं।' शान्ति भक्ति-आकुलता का अन्त शान्ति को जन्म देता है । परपदार्थों के प्रति ममत्व भाव रखने पर अशान्ति की उत्पत्ति हुआ करती है। वीतराग प्रभु का चिन्तवन करने से वीतराग भाव उत्पन्न होता है फलस्वरूप चित्त को निराकुलता मुखरित होती है । शान्ति को दो भागों में विभाजित किया गया है, यथा-१-क्षणिक शान्ति २-- शाश्वत शान्ति । क्षणिक अथवा शाश्वत शान्ति प्राप्त करने के लिए की गई भक्ति वस्तुतः शान्ति भक्ति कहलाती है। जिनेन्द्र देव की भक्ति करने से अचिन्त्य माहात्म्य, अतुल तथा अनुपम सुखशान्ति प्राप्त होती है। तीर्थकर शान्ति के प्रतीक हैं। उनके गुणों का चिन्तवन करने से शान्ति को प्राप्ति होती है। पूजक चौबीस तीर्थकरों से शांति के लिए प्रार्थना करता है। इतना ही नहीं जैन धर्म में शान्ति कामना की १. जय त्रिशलानंदन हरिकृत वंदन, जगदानन्दन चन्दवर । भवताप निकन्दन तनमन वंदन, रहित सपंदन नयनधरं ।। - श्री महावीर स्वामी पूजा, वृदावन, राजेश नित्य पूजा पाठ सग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, अलीगढ़, प्र० सं० १६७६, पृष्ठ १३६ । अव्याबाधमचिन्त्य सारमतुलं त्यक्तोपमं शाश्वतं । सोरव्यं त्वच्चरणारविंद युगलस्तुत्यैव संप्राप्यते ।। -शान्ति भक्ति, आचार्य पूज्यपाद, श्लोक ६, दशभक्त्यादि संग्रह, सिद्धसेन जैन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, मलाल, सावर कांठा, गुजरात, पृष्ठ १७७ । ३. येऽस्यचिता मुकुट कुंडलहार रत्नः । शक्रादिभिः सुरगणः स्तुत पादपद्माः ।। ते में जिनाः प्रवरवंश जगत्प्रदीपाः । तीर्थकराः सतत शांति करा भवन्तु ।। -शान्तिभक्ति, आचार्य पूज्यपाद, श्लोक १३, दशभक्त्यादि संग्रह, सिद्धसेन जैन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, साबरकांठा, गुजरात, पृष्ठ १८०-१८१।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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