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________________ परिवारों में नित्य नियम के साथ किया जाता है । अठारहवीं शती में करियर ग्रामतराप द्वारा प्रणीत 'श्री बीस तीर्थकर पूजा' उल्लेखनीय काव्यकृति है। इसमें विवेह-क्षेत्र में विद्यमान बीस तीथंकरों की भक्ति भवसागर से मुक्त होने के लिए की गई है।' उन्नीसवीं शती में चौबीस तीर्थंकरों की. अनेक कवियों द्वारा पूजाएं रची गई हैं। भ० ऋषभदेव से लेकर म. महावीर तक रची गई पूजाओं में तीर्थकर भक्ति का सुन्दर प्रतिपादन हुआ है । चौबीस तीपंकरों में तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ विषयक कविवर बख्तावररत्न की पूजा रचना जन-समाज में प्रचलित है। इसमें म. पार्वनाम के गुणगान के साथ तीर्थकर भक्ति का सुन्दर चित्रण हुआ है। कवि ने पूजक की कामना व्यक्त करते हुए स्पष्ट कहा कि तीयंकर पाश्र्वनाथ की भक्ति करने से जीवन के सारे क्लेश दुःख नष्ट हो जाते हैं साथ ही सांसारिक सुख सम्पतिके साथ शिव-मार्ग की मंगल प्रेरणा प्राप्त होती है।' इसी परम्परा १. इन्द्र फणीन्द्र नरेन्द्र वंद्य, पद निर्मलधारी । शोभनीक संसार सार गुण, हैं अधिकारी ।। क्षीरोदधि सम नीर सों पूजों तषा निवार । सीमन्धर जिन आदि दे बीस विदेह मंझार ।। श्री जिनराज हो भव, तारण तरण जिहाज हो। ॐ हीं सीमन्धर, जुगमन्धर, बाहु, सुबाहु, संजातक, स्वयंप्रभ, ऋषभानन, अनन्तवीर्य, सूरप्रभ, विशाल कीति, बजधर, चन्द्रानन, भद्रबाहु, भुजंगम, ईश्वर, नेमिप्रभ, वीरसेन, महाभद्र, देवयशोडतया, अजितवार्य विंशति विद्यमाम तीर्थकरेभ्यो जन्म, मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । -~श्री बीस तीर्थकर जिन पूजा, धानतराय, नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १६७६, पृष्ठ ५६-५७ । २. दियो उपदेश महाहितकार, सुभव्यन बोवि समेद पधार । सुवर्ण भद्र जहाँ कूट प्रसिद्ध, वरी शिवनारि लही वसुरिख । जजू तुम चरन दुह कर जोर, प्रभु लखिये अब ही मम ओर । कहे बस्तार रन बनार, जिनेश हमे भव पार लगाय ।। ----श्री पार्वनाथ पूजा, बख्तावररत्न, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेठल वर्क्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १६७६, पृष्ठ १२४ । ३. जो पूजे मनलाय भव्य पारस प्रभु नित हो। ताके दुःख सब जाय भीत व्यापं नहिं कित ही ।। सुख सम्पति अधिकाय पुत्र मित्रादिक सारे। अनुक्रम सों शिव लहें रतन' इम कहें पुकारे । -श्री पार्श्वनाथ जिन पूजा, बरतावररत्न, राजेशनित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वसं, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १९७६, पृष्ठ १२४ ॥
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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