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________________ ( ६६ ) ११६वीं प्रशस्ति 'अम्बिकाकल्प' की है जिसके कर्ता भ० शुभचन्द्र हैं, जिन्होंने जिनदत्तके अनुरोधसे ब्रह्मशील पठनार्थ एक दिनमें इस ग्रन्थकी रचना की है । भ० शुभचन्द्र नामके कई विद्वान हो गए हैं । उनमें से यह प्रन्थ कृति कौनसे शुभचंद्रकी है यह ग्रन्थ की अन्तिम प्रशस्तिपरसं कुछ भी ज्ञात नहीं होता, बहुत सम्भव है कि इसके रचयिता ३२ नं० की प्रशस्ति वाले भ० शुभचन्द्र हों जिनका समय १६वीं १७वीं शताब्दी सुनिश्चित है। 9 ११७वीं प्रशस्ति 'तत्त्वार्थरत्नप्रभाकर' अर्थात तत्त्वार्थ टिप्पण' की है जिसके कर्ता भट्टारक प्रभाचंन्द्र हैं जो प्राचार्य नयसेनकी संततिमें होने वाले हेमकीर्ति भट्टारकके शिष्य औद भ० धर्मचन्द्रके पट्ट शिष्य थे और काष्ठान्वयमें प्रसिद्ध थे । इन्होंने सकीट नगरमें जो एटा जिलेमें आबाद हैं, लंबकंचुक (लमेच् ) ग्राम्नायके सकरू (तू) साहू के पुत्र पंडित मोनिककी प्रार्थना पर उमास्वातिके प्रसिद्ध तत्त्वार्थसूत्र पर 'तत्त्वाथ रत्न प्रभाकर' नामकी यह टीका 'जैता' नामक ब्रह्मचारीके प्रबोधनार्थ लिखी हैं । इसका रचनाकाल वि० सं० १४८३ भाद्रपद शुक्ला पंचमी है जिससे यह प्रभाचन्द्र विक्रमकी ११वीं शताब्दीके उत्तरार्धके विद्वान हैं ११८वीं प्रशस्ति 'गणितसारसग्रह' की है, जिसके कर्ता आचार्य महावीर हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ में गणितका सुन्दर विवेचन किया गया है इस ग्रन्थ की रचना श्राचार्य महावीरने राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्षके राज्यकालमें की है। अमोघवर्षके राज्यकालकी प्रशस्तियों शक सं० ७३८ से ७६६ तक की मिली हैं । शक सम्बत ७८८ का एक ताम्रपत्र भी मिला है, जो उनके राज्यके ५२ वर्षमें लिखा गया हैx । इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि राजा अमोघवर्ष मन् ८१५ से ८७७ तक राज्य किया है । श्रमोघवर्षके गुरु * देखो, भारतके प्राचीन राजवंश भाग ३ पृ० ३६ । x Dr. Altekar, The Rasetrakuta and Their Times. P. 71.
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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