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________________ ( ७६ ) १०५वीं और १०६ वीं प्रशस्तियाँ 'रात्रिभोजन त्याग और 'नेमिनाथ पुराणकी हैं, जिनके कर्ता ब्रह्मनेमिदत्त हैं । ब्रह्मदत्तका परिचय वीं प्रशस्ति में दिया गया है । १०७ वीं प्रशस्ति 'समवसरण पाठ' की है, जिसके कर्ता प० रूपचन्द्रजी हैं। जो विक्रमकी १७वीं शताब्दीके विद्वान थे और भट्टारकीय पंडित होनेके कारण 'पाडे' की उपाधि से अलंकृत थे । आपको हिन्दीके सिवाय संस्कृत भाषाके विविध छन्दोंमें कविता करनेका अच्छा अभ्यास था । आपका जन्म स्थान कुह नामके देशमें स्थित 'सलेमपुर' था । आप अग्रवाल वंशके भूषण गर्गगोत्री थे । आपके पितामहका नाम मामट और पिता का नाम भगवानदास था। भगवानदासकी दो पत्नियां थीं, जिनमें प्रथमसे ब्रह्मदास नामके पुत्रका जन्म हुआ। दूसरी 'चाचो' से पांच पुत्र समुत्पन्न हुए थे --- हरिराज, भूपति, अभयराज कीर्तिचन्द्र और रूपचन्द्र इनमें अन्तिम रूपचन्द्र ही प्रसिद्ध कवि थे और जैन सिद्धान्तके अच्छे मर्मज्ञ विद्वान थे । वे ज्ञान-प्राप्ति के लिये बनारस गए और वहांसे शब्द और रूप सुधारका पानकर दरियापुरमें लौटकर आये थे । दरियापुर वर्तमान में बाराबंकी और अयोध्याके मध्यवर्ती स्थानमे बसा हुआ है, जिसे दरियावाद भी कहा जाता है। वहां श्राज भी जैनियोंकी बस्ती है और जिनमन्दिर बना हुआ है । हिन्दी के प्रसिद्ध कवि बनारसीदासजीने अपने 'अर्धकथानक' मे लिखा है कि सवत् १६७२ मे आगरा में पं० रूपचन्द्रजी गुनीका आगमन हुना और उन्होंने तिहुना साहूके मन्दिर में डेरा किया । उस समय आगरा में सब अध्यात्मियोंने मिलकर विचार किया कि उक्त पांडेजीसे श्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती द्वारा संकलित गोम्मटसार ग्रन्थका वाचन कराया जाय । चुनांचे पंडितजीने गोम्मटसार ग्रन्थका प्रवचन किया और मार्गणा, गुणस्थान, जीवस्थान तथा कर्मबन्धादिके स्वरूपका विशद विवेचन किया। साथ ही, क्रियाकाण्ड और निश्चयनय व्यवहारनयकी यथार्थ
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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