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________________ (५५) ८१ वी प्रशस्ति 'जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय' नामक प्रतिष्ठासंग्रह की है, जिसके कर्ता कवि अय्यपार्य हैं, जो मूल संघान्वयी मुनि पुप्पसेनके शिष्य करुणाकर श्रावक और अम्बिा माताके पुत्र थे । उनका गोत्र काश्यप था और वे जैनधर्मके प्रतिपालक थे । कवि अय्यपार्यने वीराचार्य पूज्यपाद और जिनसेनाचार्य भाषित तथा गुणभद्र, वसुनन्दी, अाशाधर, एकसंधि और कविहस्तिमल्लके द्वारा कथिन पूजा क्रमको धरसेनाचार्यके शिप्य अय्यपायेने कुमारसेन मुनिकी प्रेरणासे उक्त प्रतिष्ठापाठकी रचना शक संवत् १२४१ (वि० सं० १३७६ के सिद्धार्थ मंवत्मरमें माघ महीने शुक्ल पक्षकी दशमी. के दिन राजा रुद्र कुमारके राज्य कालमें पूर्ण की है। ग्रन्थकार कवि हस्तिमल्लके ही वंशज जान पड़ते हैं। ___ ८२वी प्रशस्ति 'धन्यकुमारचरित' की है, जिसके कर्ता प्राचार्य गुणभद्र हैं, जो मुनि माणिक्यसनके प्रशिप्य और नेमिसेनके शिष्य थे। श्राचार्य गुणभद्ने प्रशस्तिमें अपना जीवन परिचय, तथा गण गच्छ और रचनाकाल आदिका कोई उल्लेख नहीं किया, जिससे ग्रंथके समयका परिचय दिया जाता। हां ग्रन्थकर्ताने अपना यह ग्रन्थ राजा परमादिके राज्यकालमें विलासपुरमें लंबकंचुक (लेमच ) गोत्रमें समुत्पन्न साधु शुभचन्द्र के सुपुत्र दानी वल्हणक धर्मानुरागसे बनाया है । राजा परमर्दि किस वंशका राजा था यह प्रशस्ति परसे कुछ मालूम नहीं होता। ग्रन्थकी यह प्रति संवत् १५०१ की लिखी हुई है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उन ग्रन्थ संवत् १५०१ से पूर्व रचा गया है, परन्तु कितने पूर्व यह कुछ ज्ञात नहीं होता। इतिहासमें अन्वेषण करने पर हमें परमादि नामक दो राजाओंका उल्लेख मिलता है, जिनमें एक कल्याणक हैहय वंशीय राजाओं में जोगमका पुत्र पेमादि या परमादि था, जो शक सन्वत् १५०१ (वि० सम्वत् ११८६) में विद्यमान था । यह पश्चिमी सोलंकी राजा सोमेश्वर तृतीयका सामन्त था । तर्दवाड़ी जिला बीजापुरके निकटका स्थान उसके आधीन १ देखो, भारतके प्राचीन राजवंश प्रथम भाग पृ० ६१
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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