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________________ (.३६ ) पादिराज जगनाथके कनिष्ठ भ्राता जान पाते हैं । पं. दीपचन्द्रजी पाएख्या केकड़ीके पास एक गुटका है जिसके अन्तकी संवत् १७५१ की मगशिर वदी ५ की लिखी-प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि शाह पोमराज श्रेष्ठीका गोत्र सोगानी था और इनके पुत्र बादिराजके भी चार पुत्र थे, जिनके नाम रामचन्द्र. लालजी, नेमीदास और विमलदास थे। विमलदासके उन समयमें टोडामें उपद्रव हुआ और उसमें वह गुटका भी लुट गया था, बादमें उसे छुटाकर लाये जो फट गया था उसे संचार कर ठीक किया गया। उक्त वादिराज राजा जयसिंहके सेवक थे-अर्थात् वे राज्यके किसी ऊँचे पदका कार्य सबालन करते थे। कविवर जगन्नाथकी इस समय उक्क तीन रचनाएँ ही उपलब्ध हैं। इसका रचना काल वि० सं० १६६६ है । यह ग्रन्थ टीका सहित प्रकाशित हो चुका है। कार्य चलता था, लोग शास्त्रोंके अभ्यास द्वारा अपने ज्ञानकी वृद्धि करते थे। यहां शास्त्रोंका भी अच्छा संग्रह था। लोगोंको जैनधर्मसे विशेष प्रेम था. शास्त्रभण्डार आज भी वहां अस्त-व्यस्त हालतमें मौजूद है, अष्टसह स्त्री और प्रमाणनिर्णय श्रादि न्यायग्रन्थोंका लेखन, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय प्रादि सिद्धान्तग्रन्थों आदिका प्रातेलेखन कार्य तथा अन्य अनेक नूतन प्रन्थोंका निर्माण यहां हुआ है। xप्रस्तुत गुटकेकी प्रथम प्रति सं० १६१० की लिखी हुई थी उसी परसे दूसरी कापी सं० १७५१ में की गई है :___ "सं० १७५१ मगसिर बदी तकनगरे खण्डेलवालान्वये सोगानी गोत्रे साहपोमराज तत्पुत्र साह वादिराजस्तपुत्र चत्वारः प्रथम पुत्र रामचन्द्र द्वितीय लालजी तृतीय नेमिदास चतुर्थ विमलदास टोडामें विषो हुवो, जब याह पोथी लुटी यहां थे छुदाई फटी-तुटी सवारि सुधारि प्राधी करी, शानाचरणकर्मक्षयाथं पुत्रादिपठनार्थ शुभं भवतु ।" -गुटका प्रशस्ति
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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