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________________ ( २३ ) सिंहनदी हैं । जो मूलसंघ पुष्करगच्छके भट्टारक शुभचन्द्रके पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए थे । इन्होंने 'पंचनमस्कार दीपिका' नामका ग्रन्थ सं० १६६७ में कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा दिन समाप्त किया है । इस प्रन्थक अतिरिक्त भट्टारक सिंहनन्दने अन्य किन ग्रन्थोंकी रचना की यह कुछ ज्ञात नहीं हो सका । हों, ऐलक पमालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, बम्बईकी ग्रन्थसूची में 'वतनिधिनिर्णय' नामका एक ग्रन्थ भ० सिंहनन्दीके नामसे दर्ज हैं । यह ग्रन्थ आरके जैनमिद्धान्त भवनमें भी पाया जाता है पर वह इन्हीं मिनन्दीकी कृति है या श्रम्य की, यह ग्रन्थके अवलोकन बिना निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता । १७वीं प्रशस्ति द्विसंधानकाव्यकी टीका 'पदकौमुदी' की है। मूल प्रन्थका दूसरा नाम 'राघव पाण्डवीय काव्य' है और उसके कर्ता प्रसिद्ध कवि धमंजय हैं। इस 'पदकौमुदी' टीका कर्ता पंडित नेमिचन्द्र हैं जो पंडित विनय प्रशिष्य और देवनन्दीक शिष्य हैं। प्रशस्ति में पंडित नेमिचन्द्रने ' त्रैलोक्यकीर्ति' नामक एक विद्वानका उल्लेख और किया है जिसके चरण कमलोंक प्रसादसे वह ग्रन्थ समुद्रकं पारको प्राप्त हुआ है। टीकाकारने प्रशfeaमें अन्य कोई परिचय नहीं दिया, जिससे उसके समयादिके सम्बन्ध में विचार किया जा सके । टीकाकारका समय दूसरे साधनोंसे भी ज्ञात नहीं हो सका । १८वीं प्रशस्ति 'ज्ञानसूर्योदयनाटक' की और १२२वीं प्रशस्ति 'सुभगसुलोचनाचरित' की है। जिन दोनोंके कर्ता भट्टारक वादिचन्द्रसूरि हैं, जो मूलसंघ सरस्वती गच्छके भट्टारक ज्ञानभूषणकं प्रशिष्य और भट्टारक प्रभाचन्द्रके शिष्य थे । इन्होंने अपना 'ज्ञानसूर्योदयनाटक' विक्रम सम्वत् १६४८ की माघ सुदी श्रष्टमीके दिन 'मधूकनार' में पूर्ण किया है। इस Treat af उस्थानिकामें ब्रह्म कमलसागर और ब्रह्मकीर्त्तिसागर नामके दो ब्रह्मचारी विद्वानोंका भी उल्लेख किया गया है, जिनकी श्राज्ञासे सूत्र धारने उक्त नाटक खेलनेकी इच्छा व्यक्र की है। ये दोनों ही ब्रह्मचारी चादिन्द्रके शिष्य जान पड़ते हैं t
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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