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________________ (११) यद्यपि सकलकीर्तिने अपने किसी भी प्रन्थमें उसका रचनाकाल नहीं दिया, फिर भी, अन्य साधनोंसे-मूर्तिलेस्णादिके द्वारा-उनका समय विक्रमकी १५वीं शताब्दीका उत्तरार्ध सुनिश्चित है । भट्टारक सकलकीर्ति ईडरकी गहीके भट्टारक थे और भ. पद्मनन्दीके पट्टपर प्रतिष्ठित हुए थे। कहा जाता है कि वे सं० १४४४ में उत गद्दी पर श्रासीन हुये थे और मं० १४६६के पुषमासमें उनकी मृत्यु महसाना (गुजरात) में हुई थी। महसानामें उनका समाधिस्थान भी बना हुआ है । भ० सकलकीर्ति द्वारा रचित प्रन्थोंके नाम इस प्रकार हैं, जिनसे उनकी विद्वत्ता और साहित्य-सेवाका अनुमान किया जा सकता है .-- १ पुराणसार २ सिद्धान्तसारदीपक ३ मल्लिनाथ चरित्र ४ यशोधर चरित्र ५ वृषभचरित्र (आदिनाथ पुराण) ६ सुदर्शनचरित्र ७ सुकमालचरित्र ८ वर्धमानचरित्र ६ पार्श्वनाथपुराण १० मूलाचार प्रदीप ११ सारचतुर्विशतिका १२ धर्मप्रश्नोत्तर श्रावकाचार १३ सद्भाषितावली १४ धन्यकुमारचरित्र १५ कर्मविपाक १६ जम्बूस्वामिचरित्र १७ श्रीपालचरित्र आदि । ब्रह्म जिनदासने भी अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है जिनमें भ० सकलकीर्तिका बड़े गौरवके साथ स्मरण किया है । चूक जिनदास सकलकीर्तिके कनिष्ठ भ्राता थे। इसलिए इनका समय भी विक्रमकी १५ वीं शताब्दीका उत्तरार्द्ध और सोलहवीं शताब्दीका पूर्वाद्ध जान पड़ता है। क्योंकि सं० १४८१ में इन्हींके अनुरोधसे बडालीमें मूलाचारप्रदीपके रचे जानेका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है । और सं० १५२० में इन्होंने गुजराती भाषामें हरिवंशरास' की रचना की है। आपकी रचनाओंमें जम्बूस्वामी चरित और हरिवंशपुराण और रामचरित ( पद्मपुराण ) ये तीन ग्रन्थ तो संस्कृत भाषामें रचे गए हैं । जम्बूस्वामीचरितकी रचनामें इनके शिष्य ब्रह्मचारी धर्मदासके मित्र द्विजवंशरत्न कवि महादेवने सहायता पहुँचाई थी। 'धर्मपंचविंशतिका' अथवा 'धर्मविलास' नामकी एक छोटी सी रचना
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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