SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६०) प्राचार्य वीरसेन मूलसंघके 'पंचस्तूपान्वय' में हुए है। पंचस्तूपान्वयकी परम्परा एक प्राचीन परम्परा है जो बादमें 'सेनसंघ' के नामसे लोकमें प्रसिद्धिको प्राप्त हुई बतलाई जाती है । वीरसेन प्राचार्य चन्द्रसेनके प्रशिष्य और प्राचार्य प्रार्यनंदीके शिष्य थे । वीरसेनने चित्रकूटमें जाकर एलाचार्यके समीप षटम्वण्डागम और कषाय-प्राभूत जैसे सिद्धान्त ग्रंथोंका अध्ययन किया था और फिर उन्होंने ७२ हजार श्लोक प्रमाण 'धवला' और बीस हजार श्लोक प्रमाण जयधवलाके पूर्वभागका निर्माण किया था। इन दोनो टीकाग्रन्थोंके अतिरिक्त प्राचार्य गुणभद्रने अपने उत्तरपुराणमें, 'सिद्धभूपद्धति टीका' के रचे जानेका और भी उल्लेख ES 'पंचस्तूपान्वय' की दिगम्बर परम्परा बहुत प्राचीन है। प्राचार्य हरिषेणने अपने कथाकोशमें वैरमुनिके कथाके निम्नपद्यमें मथुरामें पंचस्तूपोंके बनाये जानेका उल्लेख किया है महारजतनिर्माणान ग्वचितान् मणिनायकः । पञ्चस्तूपान्विधायाप्रे समुच्चजिनवेश्मनाम् ॥ प्राचार्य वीरसेनने धवलामें और उनके प्रधान शिष्य जिनसेनने जय. धवला टीका प्रशस्तिमें पंचस्तूपान्वयके चन्द्रसेन और आर्यनंदी नामके दो प्राचार्योंका नामोल्लेख किया है जो प्राचार्य वीरसेनके गुरु प्रगुरु थे। इन दोनों उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि पंचस्तूपान्वयकी परम्परा उस समय चल रही थी और वह बहुत प्राचीनकालसे प्रचारमें आ रही थी। पंचस्तूपनिकायके प्राचार्य गुहनंदीका उल्लेख पहाड़पुरक ताम्रपत्र में पाया जाता है. जिसमें गुप्त संवत् १५६ सन् ४७८ में नाथशर्मा ब्राह्मणके द्वारा गुहनंदीक बिहारमें अर्हन्तोकी पूजाके लिये तीन ग्रामों और अशर्फियोंके देनेका उल्लेख है (एपिग्राफिया इंडिका भा० २० पेज ११)। इससे स्पष्ट है कि सन् ४७८ से पूर्व 'पंचस्तूपनिकाय' का प्रचार था और उसमें अनेक प्राचार्य होते रहे हैं। १ सिद्धभूपद्धतिर्यस्य टीका संवीक्ष्य भिक्षुभिः । टोक्यते हेलयान्येषां विषमापि पदे पदे ।।-उत्तरपुराण ६
SR No.010101
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy