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________________ [जैनधर्म-मिांसा मुख्य अर्थ सम्भव न हो वहाँ उसमें सम्बद दूसरा अर्थ लेना' लक्षणा है। जैसे सारा देश शिक्षित होगया । यहॉपर देश शब्दका अर्थ देशवासी है । व्यञ्जनामें प्रकरण आदिके अनुसार इच्छित अर्थ किया जाता है । जैसे ' सन्ध्या होगई' इस वाश्यक अर्थ, सामायिक करना चाहिये, नमाज़ पढ़ना चाहिये, प्रार्थना करना चाहिये, भोजन करना चाहिये, घर. चलना चाहिये आदि अनेक हैं। जैसा प्रकरण, वैसा अर्थ । _____ रूपक आदि अलंकारमय भाषामें भी, शब्दका अर्थ • बदल ! जाता है इसलिये सन्यासत्यके विचार कवल सीधे अभिधेय अर्थका ही विचार नहीं किया जा सकता किन्तु यह देखना चाहिये । कि बोलनेवाले का अभिप्राय क्या है ! अभिप्रायके ऊपरही सत्यासत्यका निर्णय किया जाना चाहिये । अभिधेय अर्थका त्याग तभी करना चाहिये जब वह असंगत मालूम होता हो । वैदिकयुगमें अग्नि की पूजाको जाती थी । इस . वाक्य में अग्निका आलंकारिक अर्थ नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह बात ऐतिहासिक दृष्टिसे असंगत है । परन्तु ' मेरे हृदय में आग • जल रही है इस वाक्य में आगका भौतिक अर्थ. असंगत है इसलिये सत्यासत्यके निर्णयमें विवेक और नि:पक्षतासे उसके अभिप्रायको जानने की कोशिश करना चाहिये, सायही अपने शब्दों का अपने अभिप्रायके अनुसारही पालन करना चाहिये । अभिधेय . अर्थको दुहाई देकर अभिप्राय का लोप करनाभी असत्य है। ६. यद्यपि सन्यके लिये अतथ्य-भाषण क्षन्तव्य कहा गया है फिर भी अध्य में कुछ न कुछ हानिकारकता है
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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