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________________ सत्य ] हमें स्पष्ट घोषण करना चाहिये कि हम इसे दुराचार नहीं मानते । ऐसा असत्य कदाचित् विरोधी असत्य की श्रेणीमें भी जा सकता है, परन्तु इनकी कसौटी न्यायसंगतता है उसपर ध्यान पूरा रखना चाहिये। ४-- अन्याय या अनुचित प्रतिज्ञा तोड़ना असत्य नहीं है । अज्ञानवश या भ्रमवश मनुष्य अनुचित प्रतिज्ञाएँ कर जाता है। उन प्रतिज्ञाओंको पूरा किया जाय तो अनर्थ या अन्याय होता है, इसलिये उन प्रतिज्ञाआको प्रतिज्ञा ही न मानना चाहिये । कानून भी इस प्रकार का विचार करता है, वह अनेक प्रतिज्ञाओंको अनुचित ठहरा देता है। मान लीजिये किसी आदमीने यह प्रतिज्ञा की कि अगर मेरा पुत्र स्वस्थ हो जायगा तो मैं देवीके आगे वकंगका वध करूँगा। परन्तु किसी आदमी ने उसे समझाया कि 'देवी तो जगन्माता है इसलिये वह बकरोंकी भी माता है । जब कोई अपनी मौतसे मर जाता है तब मातापिता उसको जलाने भी नहीं जाते, फिर माता अपने बच्चेको कैसे मरवा सकती है ? कैसे उसके खुनमाप्तका भोगकर सकती है ?' इस प्रकार समझानेसे वह समझ गया कि पशुबलि करना घोर पाप है । ऐसी अवस्था में वह पहिले की हुई प्रतिज्ञाको तोड़दे तो इसमें असत्य-भाषणका पाप नहीं लगेगा क्योंकि उसकी पहिली प्रतिज्ञा अन्याय्य और अनुचित थी। अर्जुन के विषय में कहा जाता है कि उसने प्रतिज्ञा की थी कि जो मुझसे कहेगा कि तू अपना गांडीव धनुष छोड़ दे, में उसका सिर काठ लूंगा । इसके बाद जब युधिष्ठिर कर्णसे पराजित
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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