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________________ अहिंसा ] [ ३३ प्रश्न- ऐसे अवसर पर अगर स्त्री, पुत्र, दास आदि कोई व्यक्ति स्वेच्छामे आत्म-समर्पण करे तब तो उपर्युक्त दोष निकल जायेंगे । उत्तर - परन्तु ऐसी अवस्था में वे स्त्री, पुत्र या दास इतने महान्, उच्च और पूज्य हो जायँगे कि कोई भी व्यक्ति, जो उनके बलिदान पर जीवित रहना चाहता है, उनसे अधिक योग्य न रह सकेगा । ऐसी हालत में उनका बलि लेना देवदारुकी लकड़ी की रक्षा के लिये चन्दन जलाने के समान होगा | प्रश्न- एक मनुष्य ऐसा है, जिस पर सैकड़ों का जीवन या उनकी उन्नति अवलम्वित है। वह अगर अपनी रक्षा के लिये किसी साधारण मनुष्य का अनिवार्य परिस्थिति में वध करे तो उस का यह कार्य निर्दोष कहा जा सकता है या नहीं ? उत्तर- इसके लिये चार बातों का विचार करना चाहिये । (अ) मैं हज़ारों का अवलम्बन हूँ--इसका निर्णय वह स्वयं न करे किन्तु वह करे, जिसे अपने जीवन का बलिदान करना है । (आ) बलिदान स्वेच्छापूर्वक होना चाहिये । (इ) इस कार्य में आत्मरक्षा का भाव नहीं परन्तु समाज-रक्षा का भाव होना चाहिये । (ई) 1 'मेरा यह कार्य आत्मरक्षा के लिये हैं या समाज-रक्षा के लिये ' इस प्रकार का संदेह का विषय बनाने से तथा दूसरे की बलि के ऊपर अपनी जीवनरक्षा होने से उसे हार्दिक पश्चात्ताप होना चाहिये । ये शर्तें बहुत कड़ी शर्तें हैं, सूक्ष्म होने से भी इनका पालन बहुत कठिन है | साथ ही ये अपवाद के निर्णय के लिये हैं इसलिये अपने अधःपतन तथा धर्मनीतिपर आघात होने की बहुत सम्भावना है, इसलिये बहुत सतर्कता के साथ इस अपवाद 1
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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