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________________ अहिंसा [२७ गुणी भ्रमर वगैरह में । उससे असंख्यगुणी असंज्ञी पंचेन्द्रिय में । उससे असंख्यगुणी संज्ञी पंचेन्द्रिय में । उससे भी संख्यगुणी मनुष्य में । उसमें भी असंयमी की अपेक्षा संयमी में संख्यगुणी है । यहाँ संयमी स मतलब वेषधारी बाबा लोगों से नहीं है, किन्तु भावसंयमियों से है। इसलिये मनुष्य को जीवित रहने के लिये अगर स्थावर प्राणियों का तथा कृमि आदि त्रस प्राणियों का वध करना अनिवार्य हो तोभी कर सकता है । क्योंकि ऐसा करने पर भी सुख का पलड़ा भारी ही रहेगा। इसीलिये इसे हिंसा नहीं कह सकते। २-शरीर की स्थिरता के लिये आहार--पान की हिंसा भी हिंसा नहीं है । शरीर में स्थित जो कमि आदि हैं उनका विनाश तो हिंसा है ही नहीं, साथ ही किसी बीमारी आदि से कृमि आदि पड़ गये हों तो चिकित्सा द्वारा उनका विनाश करना भी हिंसा नहीं है। शंका- यदि स्वास्थ्यरक्षा के लिय कृमि आदि का नाश करना हिंसा नहीं है तो कृमि आदि का नाश करके तैयार की हुई दवाइयाँ लेना भी हिंसा न कहलाया। उत्तर- शरीर में स्थित प्राणियों का वध करना स्वास्थ्य के लिये जैसा और जितना अनिवार्य है वैसा और उतना दूसरे प्राणियों का वध करना अनिवार्य नहीं है । अनिवार्यता की मात्रा पर्याप्त न होने से इसे अहिंसा नहीं कह सकते । अनिवार्यता की मात्रा जितनी कम होगी, हिंसा की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। " डॉक्टर ने यही दवाई बतलाई है इसलिये यह अनिवार्य है"
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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