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________________ अतिचार ] [ ३४३ अनाचार ही हो जायगा । इसलिये उल्लंघन करने में भी मर्यादा की अपेक्षा रखना चाहिये । जैसे, गाय के गर्भवती होने पर संख्या बढ़ जाती है, परन्तु उसे गिनती में शामिल न करना। आभूषणों की संख्या बढ़ रही हो तो दो आभूषणों को मिलाकर एक कर देना आदि । ___आचार्य समन्तभद्र ने इस व्रत के अतिचारों के नाम दूसरे ही दिये हैं । १-पशु जितनी दूर तक चल सकते हैं उससे अधिक दूर तक चलाना । २-आवश्यकता से अधिक संग्रह करना । 3-लाभ के आवेश से बहुत आश्चर्य करना । ४-बहुत लोभ--कंजमी करना । ५--लोभ से पशुओं पर बहुत भार लादना । विश्वन और देशविति की आज आवश्यकता ही नहीं है, इसलिये उनके अतिचार नहीं बताये जाते । सामायिक -मन वचन काय की चञ्चलता, अनादर से सामायिक करना या भूल जाना । ये बातें प्रतिक्रमण प्रार्थना अदि में भी लगाना चाहिये । प्रतिक्रमण में एक बड़ा भारी अतिचार यह गिनना चाहिये कि जिससे क्षमा याचना करना चाहिये उससे न करके दुनिया भर के जीवों से क्षमा-याचना करना। स्वाध्याय-पहिले यह बारह व्रतों में नहीं गिना जाता था, इसलिये इसके अतिच.र नहीं बनाये गये । अब इसके अतिचार यो समझना चाहिये। अतिवाहनातिसंग्रह विस्म्य लाभारिमारवहनानि । परिमित परिमहस्य च विक्षपा पंच लक्ष्यन्ते !! -रत्न क. था. ३-१२ !
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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