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________________ ३४२] . । जैनधर्म-मीमांसा अनाचार है । जहाँ तलाक का रिवाज़ हो वहाँ पर तलाक देना अतिचार मानना चाहिये, या तलाक देकर दूसरा विवाह करना अतिचार है, अथवा दूसरा विवाह करने की इच्छा से तलाक देना अतिचार है । २-दूसरे के द्वारा परिगृहात वश्या के पास जाना । ३-अथवा अपरिगृहीत वेश्या के पास जाना । पहिले समय में इस विषय में नैतिकता के बन्धन बहुत शिथिल थे, इसलिये वेश्या-सेवन भी अतिचार ही था, न कि अनाचार । परन्तु स्त्रियों के साथ यह अत्याचार है। वास्तव में वेश्या-गमन भी अनाचार है । हाँ, अविवाहित पुरुष की दृष्टि से इसे अतिचार कह सकते हैं, परन्तु विवाहित के लिये तो अनाचार ही है । दो पुरुषों में होने वाला काम-सेवन भी वेश्या-सेवन के समान दोप है । ४. काम-सेवन के सिवाय भिन्न अंगों से काम-सेवन करना । ५. कामोत्तेजना अधिक होना या इसके लिये कामोत्तेजक पदार्थों का उपयोग करना । , आचार्य समन्तभद्र ने परिगृहीत और अपरिगृहीत, इस प्रकार वेश्या के दो भेद नहीं रक्खे हैं । उनने दोनों के स्थान पर एक ही अतिचार माना है और पाँच की संख्या पूरी करने के लिये विटत्व-भण्डपन से भरी हुई वचन और मन की चेष्टाएँ को अतिचार माना है । यह मतभेद साधारण है। परिग्रह परिमाण- धनधान्यादि परिग्रह की मर्यादा का उल्लंघन करना अतिचार है । मर्यादा का उल्लंघन करने से ते * क्षेत्रवास्तु हिरण्य सुवर्ण धनधान्य दासीदास कुप्प प्रमाणातिकमाः । ~तत्वार्थ ७-११
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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