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________________ अहिंसा ] [२५ दुर्भिक्ष आदि के समय ऐसी घटनाएँ हो जाया करती हैं । इस प्रकार अहिंसा के विषय में यह एक महान् प्रश्न खड़ा होता है कि कितनी हिंसा को हिंसा न कहा जाय ? इस बातको समझने के लिये यहां कुछ नियम बनाये जाते हैं। ?--बिना किसी विशेष प्रयत्न के जो क्रियाएँ शरीर से होती रहती हैं, उनके द्वारा होनेवाली हिंसा, हिंसा नहीं है । जैसे--श्वासोच्छ्वास आदि में होनेवाली हिंसा । २--शरीर को स्थिर रखने के लिये आहार और पान आवश्यक है। इनकी सामग्री जुटाने में जो हिंसा अनिवार्य हो, वह भी हिंसा नहीं है । परन्तु इस विषय में आगामी तीसरे और सातवें नियमों का खयाल रखना चाहिये ।। ३--अपने निर्वाह के लिये किसी ऐसे प्राणी का वध न होना चाहिये जिसकी चैत्यन्य की मात्रा करीब करीब अपने समान हो । ४--अपने से हीन चैतन्यवाले प्राणी की हिंसा भी निरर्थक न होना चाहिये । ५.-सक्ष्म प्राणियों की हिंसा रोकने के लिये ऐसा प्रयत्न न करना चाहिये जिससे दूसरे ढंग से वैसी ही हिंसा होने लगे; साथ ही प्रमाद वगैरह की वृद्धि हो । ६--जीवन के विकास के लिये या परोपकार के लिये अगर सूक्ष्म प्राणियों की हिंसा करना पड़े तो भी वह क्षन्तव्य है। ७-दो प्राणियों में जहाँ मौत का चुनाव करता है वहां उसकी रक्षा करना चाहिये जो परोपकारी हो। अगर इस ष्टि से निर्णय न हो सके तो जिससे भविष्य में परोपकार की आशी हो ।
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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