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________________ # ३२८ ] [ जैनधर्म-मीमांसा हैं। देश-काल-पात्र के भेद से इनमें न्यूनाधिकता तथा नामों में परिवर्तन किया जा सकता है । जैनत्व | मैं पहिले कह चुका हूँ कि मूलगुण व्रती होने की पहिली शर्त है, परन्तु व्रत हुए बिना जैन बन सकता है। जैन सम्प्रदाय में जन्म लेने से जैन में गिनती हो सकती है, परन्तु वास्तव में वह सच्चा जैन नहीं बन सकता । सच्चा जैन होने के लिये उसमें अमुक गुण होना चाहिये । व्रतादि उसमें हों या न हों, परन्तु अमुक तरह की भावना तो होना ही चाहिये, जिससे वह जैन कहा जा सके। 1 ऊपर जो मूलगुण बताये गये हैं उनमें से प्रारम्भ के तीन मूलगुण जैनत्व की शर्त के रूप में पेश किये जा सकते हैं । १ - सर्व धर्म समभाव, २ - सर्व जाति समभाव, ३ - सुधारकता (विवेक) ) I -- अगर रखने के आवश्यकता तो इस बात की है कि प्रत्येक जैन आठ मूलगुणों का पालन करे, परन्तु किसी कारणवश न कर सकता हो तो जैनत्व की लाज लिये कम से कम इन तीन गुणों का पालन तो अवश्य करे। और जहाँ तक बन सके प्रार्थना में शामिल अवश्य हो । प्रतिदिन न हो सके तो सप्ताह में एक दिन अवश्य हो । नित्य कृत्य । प्रत्येक धर्म-संस्था के सदस्यों के लिये कुछ ऐसे साधारण नित्यकृत्य नियम किये जाते हैं - जिनसे उस संस्था की संघटना बना
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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