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________________ मृहस्थवर्म] [३१७ भेद है । पूज्यपाद और अकलंक * आदि आचार्य प्रोषध' शब्द का अर्थ पर्व-दिवस-अष्टमी चतुर्दशी करते हैं, और पर्व के दिनों में उपवास करने को प्रोषधोपवास कहते हैं । 'प्रोषध' शब्द के अर्थ में समन्तभद्राचार्य का मत जुदा है । वे कहते हैं कि उपवास के पहिले दिन में एक बार भोजन करना प्रोपध है । पहिले प्रोषध (एक बार भोजन करना) करना, फिर उपवास करना, इस प्रकार प्रोषधोपवास होता है। समन्तभद्राचार्य का मत श्वेताम्बर सम्प्रदाय के मत से भी नहीं मिलता; स्वताम्बर सम्प्रदाय में जो मत प्रचलित है वही पूज्यपाद आदि दिगम्बराचार्यों को भी स्वीकृत है । अर्थ एक है - परन्तु शब्द में थोड़ा फरक है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में 'प्रोषध' नहीं किन्तु 'पोषध' पाठ है। पहिले जमाने में उपवास का अधिक महत्व था इसलिये यह एक व्रत बना दिया गया । परन्तु आज इस व्रत की आवश्यकता नहीं है। उपवास करना ठीक है, परन्तु नियमित व्रत के रूप में नहीं। शरीर में विकार वगैरह होने पर उपवास करना चाहिये। पीछे भी इस व्रत की आवश्यकता का कम अनुभव होने लगा था। इसलिये सागारधर्मामृत आदि ग्रंथों में हलका भोजन करने का * प्रोषधशब्दः पर्वपर्यायवाची । प्रोषधे उपवासः प्रोषधोपवासः । त. राज. वा० ७-२१-७ चतुराहार विसर्जनमुपवासः प्रोषधः सद्भुक्तिः स प्रोषधोपवासो य. दुपोप्यारंभमाचरति । रन• श्रावकाचार | ४-१९ पौषधः पत्यनान्तरम् । तत्वार्थमान्य ७.१६ । + उपवासाक्षमः कार्योऽनुपबासस्तदक्षभैः , आचाम्ल निर्विकृत्यादि शक्त्या हि ऐसे तपः । ५-३५ । -
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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