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________________ ३१६.]. [जैनधर्म-मीमांसा करे, परन्तु साधारणतः इस या ऐसे ही किसी एक काम के लिये दिन में एक बार समय देना काफी है । इसलिये साधारणतः एक बार का रिवाज़ होना चाहिये । विशेष अवसरों पर एक से अधिक बार किया जाय तो अच्छा है। सामायिक में मन्त्र पढ़ने का रिवाज अनावश्यक है। इसकी अपेक्षा वह कर्तव्याकर्तव्य का विचार करे, प्रतिक्रमण करे--यही अच्छा है । अथवा जिस भाषा को वह समझता हो उस भाषा में हृदय को आकर्षित करनेवाले पद्य पढ़े तो अच्छा है ! इतने बार अमुक नाम बोलना चाहिये, इत्यादि नियम समय का दुरुपयोग कराते हैं, क्योंकि नामों के गिनने में ही उसका समय नष्ट हो जाता है। हाँ, यह सम्भव है कि पुराने समय में समय मापने के विशषे साधन न होने से समय-मापक यन्त्र के रूप में नामों की गिनती रक्खी गई हो; परन्तु आज उसकी जरूरत नहीं है। जब तक विचारों की धारा ठीक चलती रहे, तब तक उसे बैठना चाहिये अथवा घड़ी से समय का निर्णय कर बैठना चाहिए । यद्यपि नामों का गिनना आदि भी चित्त स्थिर करने में सहायक होता है, परन्तु उस स्थिरता का कुछ मूल्य नहीं है जो जीवन के लिये उपयोगी कोई पारमार्थिक लाभ न देती हो। प्रोषधोपवास- साधारणतः इसके तीन नाम मिलते हैंप्रोषधोपवास, पौषधोपवास और पोषधवत । पहिला नाम दिगम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित है, किन्तु उसके अर्थ करने में लेखकों में मत
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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