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________________ सुनिसंस्था के नियम ] [१९१ सहयोगियों के मना करने पर भी दिया गया हो, वह सब भोजन मुनि के लिये अग्राह्म है | इसी प्रकार किसी को खुश करके आहार लेना, झूठी-सच्ची बातों का अनुमोदन करके, या विद्या वगैरह की आशा दिलाकर या कुछ औषध आदि देकर आहार लेना भी अनुचित है । . उद्दिष्टाहार त्याग का मुख्य कारण यही है कि समाज को कष्ट न हो, साधु-संस्था समाज के लिये बोझ न बन जाय । दूसरा कारण यह भी कहा जा सकता है कि इससे विषय - लोलुपता न आ जाय, इच्छानुसार भोजन न मिलने से रसना -इन्द्रिय का विजय हो; परन्तु इन दोनों प्रयोजनों की सिद्धि नहीं हो रही है । भाज एक निमन्त्रित व्यक्ति की अपेक्षा उद्दिष्ट त्याग का बाह्याचार दिखलानेवाला व्यक्ति समाज के लिये अधिक कष्टप्रद है । निमन्त्रण से तो एक व्यक्ति के लिये एक आदमी को भोजन तैयार करना पड़ता है और अगर उसमें रसना - इन्द्रिय जीतने की इच्छा हो तो निमन्त्रित होकर के भी जीत सकता है । निमन्त्रण में सादा भोजन भी किया बा सकता है; परन्तु उद्दिष्टन्यागी के लिये तो सैकड़ों मनुष्यों को भोजन तैयार करना पड़ता है। अगर एक भी मुनि भोजनार्थी होता है तो गाँव के सभी गृहस्थों को एक एक आदमी की रसोई अधिक बनाना पड़ती है। इतना ही नहीं बल्कि वह रसोई भी बसाधारण होती है । इससे शक्ति से अधिक खर्च भी होता है । इसकी अपेक्षा निमंत्रण स्वीकार कर लिया जाय तो समाज को बहुत कम कष्ट हो ।
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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