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________________ अपरिग्रह ] [१४९ पहिले भी होते थे; परन्तु उपनिवेश स्थापना के पहिले ध्येय और अब के ध्येय में जमीन आसमान का अन्तर है । पहिले तो लोग जीवन निर्वाह के लिये बस जाते थे, परन्तु अब तो पूँजी लगाकर पैसा पैदा करने के लिये उपनिवेश बनाये जाते हैं । इसके लिये में यह पूँजी लगाई जाती है उनके पास अधिक पूँजी होती नहीं है इसलिये नफा के बदले वहाँ प्रकृतिक और आवश्यक वस्तुएँ पूँजीपति देशों के पास पहुँचती हैं । यह एक तरह की सभ्य डकैती है । इस प्रकार पूँजी का प्रभाव क्षेत्र जब राष्ट्र के बाहर भी हो जाता है, तब प्रतियोगितासे बचने लिये जिस प्रकार राष्ट्र के भीतर आर्थिक गुट बनाये जाते थे उसी प्रकार राष्ट्र के बाहर भी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक गुट बनाये जाने लगते हैं। और इसके बाद अमुक गुट अमुक देश को लूटे और अमुक अमुक को, इस प्रकार संसार के देशों का बटवारा कर लिया जाता है । इस बटवारे के लिये भयंकर युद्ध तक किये जाते हैं। जो देश या जो व्यापारी लोहे के कारखानों में या बारूद आदि विस्फोटक पदार्थों के कारखानों में पूंजी लगाते हैं वे इस बात की चेष्टा करते हैं कि किसी प्रकार युद्ध हो । धनिक होने के कारण इनका प्रभाव बहुत होता है, प्रचार करने के साधन भी इन के पास बहुत अधिक होते हैं इसलिये ये लोग देशभक्ति आदि के नाम पर जनता को उत्तेजित कर लड़ा देते हैं । लोग बुरी मौत मरते हैं किन्तु इनका व्यापार चमकता है।
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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