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________________ अपरिग्रह ] [ १३३ अगर यह कहे कि यह विरोधी मैथुन है तो उसे अपने इस काम को बलात्कार सिद्ध करना पड़ेगा और उस पुरुष को शत्रु बताना पड़ेगा | परन्तु स्वेच्छापूर्वक किये गये इस कार्य में ऐसा होना अत्यन्त कठिन है । मैथुन के इन चार भेदों के बलाबल पर अवश्य विचार करना चाहिये | सुख शांति के लिये ब्रह्मचर्य आदर्श है, परन्तु समाज संरक्षण के लिये अमुक सीमा तक मैथुन भी आवश्यक है 1 दोनों का समन्वय करके ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये, तथा द्रव्यक्षेत्र कालभाव के विचार को न भूलना चाहिये | अपनी शक्ति और स्वतन्त्रता की तथा दूसरों के अधिकारों की रक्षा के किये लिये ब्रह्मचर्य उपयोगी है । 1 अपरिग्रह साधाण लोग परिग्रह को पाप नहीं मानते, वल्कि उन की दृष्टि में जो जितना बड़ा परिग्रही है वह उतना ही बड़ा पुण्यात्मा है, आदरणीय भी है। धन और धनवानों की महिमा से समस्त जगत का साहित्य भरा पड़ा है, दुनियाँ के बड़े बड़े राज्य शासन - चाहे वे प्रजातंत्र हों या एक तंत्र और बड़े बड़े विद्वान - भले ही वे बात-बात में धर्म के ही गीत गाते हों, प्रायः सभी धनवानों के इशारों पर नाचते रहे हैं और नाचते हैं । आज 'बड़ा आदमी' शब्द का बहु- प्रचलित और सुगम अर्थ 'श्रीमान' है । जो धन सर्व - शक्तिमान के स्थान पर विराजमान है उस के संग्रह को पाप कहना और उसके त्याग को व्रत संयम आदि
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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