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________________ ब्रह्मचर्य . [१२७ - उद्योगी- संकल्पी मैथुन को बचाकर समाज की किसी आवश्यकता को पूर्ण करते हुए अर्थ लाभ के लिये जो मैथुन किया जाता है, यह उद्योगी मैथुन है। वेश्याओं का धंधा इसी प्रकार का मैथुन है । यद्यपि उसमें सांकल्पिकता का बचाव नहीं किया जाता, इसलिये वह सदोष है, फिर भी यह बचाव किया जा सकता है । अगर यह बचात्र किया जाय तो वह उद्योगी मैथुन कहलायगा । । '', वेश्याओं का अस्तित्व यद्यपि समाज का कलंक है, तथापि जबतक समाज में विषमता है और न्याय का पूर्ण साम्राज्य नहीं है, तब तक वेश्याओं का होना अनिवार्य है। इतनाही नहीं किन्तु अगर यह विषमता दूर नहीं की जाय और न्याय की रक्षा न की जाय तो वेश्याओं का होना आवश्यक भी है। वश्याप्रया के अस्तित्व में स्त्री और पुरुष दोनों का हाथ हैं। अगर नियों को वेश्या बनने के लिये विवश न होना पड़े तो यह कुप्रथा नष्ट हो सकती है, अथवा पुरुषों को वेश्याओं की अरूरत ही न हो तो यह प्रथा नष्ट हो सकती है। अभी तक समाज की रचना इतनी सदोष है कि उसके लिये वेश्याएँ आवश्यक हो गई हैं। हम देखते हैं कि अच्छे अच्छे युवक अविवाहित रहते हैं । कुमारियों की संख्या कम होने से युवकों को त्रियाँ नहीं मिलती। इनमें से सभी युवक आजन्म ब्रह्मचारी नहीं रह सकते इसलिये यह अनिवार्य है कि परखियों के ऊपर छल , से या बल से इनके आक्रमण हो । उनके इस आक्रमण को रोकने के लिये
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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