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________________ ९६) [बैन-धर्म-मीमांसा ५--जिन बातों को स्वीकार करनेमें सिर्फ लजाही बाधक है, जिनको प्रगट करना सभ्यतानुमोदित नहीं है, ऐसी क्रियाएँ छुप कर भी की जाय तो भी वे वारीमें शामिल नहीं हैं । जैसे पतिपत्नीका प्रेमक्रीड़ा. आदि। परस्त्रीसेवनका छुपाना इस अपवादमें नहीं बासकता, क्योंकि उसमे त हम समाजको धोका देकर उसके नियमभंग करने हैं । पति पत्नी की कौडा आदिमें ये बातें नहीं । ___ इस प्रकार चोरी के रूप और अस्तेय व्रतके अपवादों के कतिपय नियमों और उदाहरणोंसे इस व्रत के समझनेमें सुभीता होजाता है । और भी अबाद मिल सकेंगे परन्तु चोरी का स्वरूप समझ लेनेमे उनका ममझना कठिन नहीं है। संकल्पी--मंकल्पपूर्वक अन्यायसे किसी का धन, यश, अधिकार आदिका चुराना । ____ आरम्भी....दूसरे के हित के लिये चोरी करना जैसे अपवादके पहिले नियममें बनाई गई है। अथवा अनजानमें कभी चोरी होजाना। उद्योगी- अपने आविकारों तथा न्यायोचित गूढ रहस्यों को छुपाये रखना उद्योगी चौर्य है । विरोधी युद्ध आदिमें तथा न्यायोचित आत्मरक्षा कार्यमें चौर्य करना पड़े तो वह विरोधी चौर्य है । कोई आदमी अपने राष्ट्र पर अन्यायसे आक्रमण करता हो तो उसकी युद्ध सामग्री चुर। लेना, छीन लेना आदि विरोधी चौर्य है। इनमें से संकल्प चोरी ही वास्तवमें पूर्ण चोरी है, इसकिने
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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