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________________ अचौर्य [९५ स्वार्थवश उसका उपयोग किसी को नहीं करने देता, या उसको बर्बाद हो जाने देता है तो उस प्रथका चुरा लना उचित है। किसी ऐसी अनुचित प्रतिज्ञामें बाँधकर अगर वह ग्रंथ मिले, जिस प्रतिज्ञासे समाजके कल्याणमें बाधा पड़ती हो तो उसे तोड़ देनाभी उचित है अथवा किसीने से साधु मा वेष बनाया हो जिसके अनुसार वह परिग्रह न रख सकता हो, फिरभी वह परिग्रह रखता हो तो उसका परिग्रह चुरा लेना भी उचित है; क्योंकि वह इस परिग्रहको सबनेका अधिकारी नहीं है : ३ - अत्याचार रोकने के लिये अगर चोरी करना पड़े तो वह भी उचित है । एक आदमी खुन करने के लिये कुरी लिये बैठा है । मौका पाकर उस की छुरी चुरा लेनाभी उचित है । परन्तु य: याद रखना चाहिये कि अन्यायमे खुन करने पर जो उतारू है उसीकी चगि उचित है । जो आत्मरक्षा के लिये छुरी लिये प्रेम है, उसी आत्मरक्षाका साधन चुरा लेना उचित नहीं है । ४- अन्यायका विरोध करनके लिये यदि सत्याग्रह करना हो और उसमें अधिकारी की आज्ञा के दिन कोई वस्तु उठाना है। तब ता वह चोरी है ही नहीं । चोरी सत्यकी रक्षा नहीं होती। सत्याग्रह में तो सत्यकी रक्षा भीतरसे भी होती है और बाहिरसेन होती है क्यों की का अधिकारीको सूचना दे देता है के में ऐसा करनेके लिये आने वाला हूँ। इसलिये बाह्यष्टि से भी सत्याग्रहके ऊपर चोरीका छींटा नहीं पड़ सकता और भीतः। शिम तो वह कि है ही।
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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