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________________ अचौर्य अच्छा, न करे तो भी कोई बुराई नहीं है। परन्तु किसीका जो विचार जब तक जनसाधारणकी सम्पत्ति न बन जावे तब तक कृतमतापूर्वक ही हमें उसका उल्लेख करना चाहिये। शंका--अमुक विचार जनसाधारणकी सम्पति बन गया है, इसको कैसे समझा जाय! समाधान -- जब लोगोंमें यह खब प्रसिद्ध होजाय कि यह विचार अमुकका है तो वह जनसाधारणकी सम्पत्ति है । महावीर, बुद्ध, रामायण, महाभारत आदि के उपदेश जनसाधरणकी सम्पाते कहे जासकते है। इस विषय असली बात तो यह है कि जो बातें हमने अपने विचारसे खोजी हो, जो हमारे अनुभवका फल हों वे हमारी है. भलेही वे अन्यत्र भी पाई जाती हो । दार्शनिक जगत्में ऐसे विचारों की समानता बहुन होती है । बैज्ञानिक खोजके विषय में समानताकी बात इतनी नहीं कहा जा सकती; तथा कहानियों तथा कविताओंके विषयमें तो समानता अशक्यही समझना चाहिये । मौलिक क्या है, और अमौलिक क्या है, इस विषयमें कदाचित दुनियाँको धोका दिया जासके, परन्तु अपना अन्तरात्मा इस बातको अच्छी तरह जानता है कि मेरा क्या है और चोरीका क्या है। १२-आवश्यकता होनेपर और मौका आनेपरभी कृतज्ञता प्रकाशित न करना भी चोरी है । जैसे किसीके उपदेशसे या सहायतासे कोई विद्वान बानी बना, या उसके मिथ्या विचार बदले अब यदि यह कहे कि इसमें तुम्हारा स्या, तो ऐसा होनाली
SR No.010100
Book TitleJain Dharm Mimansa 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1942
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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