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________________ ३५२] पाँचवाँ अध्याय दाय भक्त व्यक्ति यह बात सुनने को तैयार नहीं होता कि हमारा कथासाहित्य दूसरों के कथासाहित्य के आधार से तैयार हुआ है । ___ परन्तु जैन कथासाहित्य के निरीक्षण से साफ़ मालूम होता है कि इसका बहुभाग कल्पित, तथा दूसरों की कथाओं को लेकर तैयार हुआ है। परन्तु पुराणों में 'पउमचरिय' सब से अधिक पुराना है । उसीके आधार पर संस्कृत पद्मपुराण बना है जो कि पउमचरिय के छायाके समान है। जैन संस्कृतपुराणों में यह सब से पुराना है । इनके पढ़ने से साफ़ मालूम होता है कि ये पुराण रामायण के आधार पर बनाये गये हैं और रामायण की कथावस्तुको लेकर उसे जैनधर्म के अनुकूल वैज्ञानिक या प्राकृतिक रूप दिया गया है। द्वितीय उद्देश में राजा श्रेणिक विचार (१) करते हैं 'लौकिक शास्त्रों में यह सुनते हैं कि रावण वगैरह राक्षस (१) सुवंति लोयसाथ रावणपमुहाय रक्खसा सब्ब । वसलोहियमसाई भक्खणपाणे कयाहारा । १०७ । किर रावणस्स माया महावलो नाम कुम्भय. एणोति । छम्मासं विगयमओ सेज्जासु निरन्तरं सुयइ | १०८ जइ बिय गएसु अंग पेल्लिज्जइ गरुय पव्वय समेस. तेल्लघडेसु य कण्णा पूरिज्जन्ते सुयंतस्स । : ०९:। पड़ पडहतूरसदं न मुणइ सो सम्मुहं पि वजन्त । न य उद्देइ महप्पा सेजाए , अपुण्ण कालम्हि | ११० । अह उडिओ विसंतो असण महाघोर परिगयसरीरो। पुरओ हवेत जो सो कुंजरमहिसाइको गिलइ १११ । काऊण उदर भरणं सुरमाणुस कुंजराइ बहुएसु । पुणरवि सेज्जारूढो भयरहिओ सुयइ छम्मासं ११२ । अन्नपि एवं मुबह जह इंदो रावण संगामे । जिणिऊण नियलबद्धो लंका नयरी समाणीओ। ११३ ।
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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