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________________ श्रुतज्ञान के भेद [ ३५१ २--मूलप्रथमानुयोग के समान अनेक कल्पित चरित्र । जैसे चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नव वासुदेव, नव प्रतिवासुदेव आदि के चरित्र । ये चरित्र गण्डिकानुयोग में आते हैं। ३ धर्म का महत्व बतलाने के लिये या अनुकरण करने की शिक्षा देने के लिये अनेक कल्पित कहानियाँ । जैसे णायधम्मकहा में रोहिणी आदि की कथाएं अथवा विपाकसूत्र की कथाएं। ४ लोक में प्रचलित कथाओं को अथवा दूसरे सम्प्रदाय की कथाओं को अपनाकर उन्हें अपने ढांचे में ढालकर परिवर्तित की गई कथाएं । जैसे रामायण, महाभारत की कथाएं, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण आदि में परिवर्तित करके अपनालीगई हैं। विष्णुकुमार मुनि की कथा भी इसी तरह की कथा है। अनेक ऐतिहासिक पात्रों के चरित्र भी परिवर्तित करके अपना लिये गये हैं। इन चार श्रेणियों में से पहिली श्रेणी ही ऐसी है जो कुछ ऐतिहासिक महत्व रखती है । बाकी तीन श्रेणियाँ ऐतिहासिक दृष्टि से सत्यसे कोसों दूर हैं । हां, वे धार्मिक दृष्टि से अवश्य सत्यके पास हो सकती हैं। फिर भी, हमें यह भूल न जाना चाहिये कि हमारा समस्त कथासाहित्य ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं लिखा गया है । उस की जितनी उपयोगिता है वह धार्मिक दृष्टि से ही है । ___ अपने कथासाहित्य का इस प्रकार श्रेणीविभाग एक श्रद्धालु भक्त क हृदय को अवश्य आघात पहुंचायेगा, क्योंकि श्रद्धालु हृदय हर एक छोटी से छोटी और अस्वाभाविक कथा को ऐतिहासिक दृष्टि से सत्य, सर्वज्ञकथित समझता है । और ख़ास कर एक संप्र
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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