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________________ ३३२ ) पाँचवाँ अध्याय जाता कि ब्रह्मचर्यमें अग्निको पानी करदेने की शक्ति है । वास्तवमें अग्निमें जलने न जलनेका असतीत्व सतत्विके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। किसी यंत्र तंत्रके प्रभावसे एक असती भी यह सफ़ाई बता सकती है और सती भी फेल हो सकती है । इसलिये निर्णय की यह कसौटी ठीक नहीं है । फिर भी लोग इसे पसंद करते थे । इसीप्रकार एक साधु किसी राजकुमारको -जिसे सर्पने काटा हैजीवित करदेता है तो लोग उसे सच्चा मानकर उसके धर्मको स्वीकार करलेते हैं । परन्तु वैद्यक के इस चमत्कारसे धर्मकी सत्यता असत्यताका क्या सम्बन्ध है, यह नहीं सोचते । दुर्भाग्यसे पुराने समय में धर्मप्रचारके लिये इस प्रकारके चमत्कारोंसे बहुत कुछ काम लिया जाता था। आजकल भी इस ढंगके चमत्कार दिखाये जाते हैं परन्तु अब लोग इन्हें तमाशा समझते हैं और ये अर्थोपार्जनके साधन समझे जाते हैं । पहिले समय में चमत्कार मुख्यतः धर्मप्रचार के साधन बने हुए थे। भगवान महावीर इन चमत्कारोंका उपयोग करते थे कि नहीं, यह तो नहीं कहा जासकता परन्तु उनके शिष्य अवश्य करते थे । सम्भव यही है कि वे भी इस चमत्कारका उपयोग करते हों । उस युगकी परिस्थिति पर विचार करते हुए यह कोई निन्दाकी बात नहीं थी। ये चमत्कार धर्मप्रचारका अंग होनेसे धर्मशास्त्रोंमें इनका समावेश हुआ था। यह बात केवल जैन संप्रदाय के विषय में ही नहीं कही जा सकती, किंतु अन्य सब सम्प्रदाय इनका उपयोग करते थे । महावीर और गोशालके अनुयायिओं में जो प्रतिद्वन्दिता चल रही थी
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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