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________________ १२ ] चौथा अध्याय इस गुत्थी को सुलझाने के लिये दर्शन और ज्ञान की परिभाषा ही बदलदी गई। उनके भेदोंकी भी परिभाषा बदलदी गई जैसे अचक्षुदर्शन की परिभाषा सिद्धसेन ने बदलदी है इतना ही नहीं किन्तु ऐतिहासिक और पौराणिक चरित्रों पर भी इस चर्चा का बड़ा विकट प्रभाव पड़ा । उदाहरण के लिये दिगम्बरों का महावीर चरित्र देखिये । दिगंबर सम्प्रदाय में महावीर - जीवन नहीं के बराबर मिलता है । इसके अनेक कारण हैं, परन्तु मुख्य कारण सर्वज्ञता की चर्चा की गुत्थियाँ हैं, जो सुलझ नहीं सकी हैं। मैं पहिले कर चुका हूँ कि युक्त योगी मानने से कोई बातचीत प्रश्नोत्तर आदि नहीं कर सकता। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में तो पुराना सूत्र साहित्य माना जाता था और उसमें महावीर का जीवन था जिसे वे हटा नहीं सकते थे, दूसरी बात यह कि इनमें क्रमवाद प्रचलित था इसलिये महावीर जीवन के वे भाग - जिनमें महावीर बातचीत करते हैं प्रश्नोत्तर करते हैं, शास्त्रार्थ करते हैं, आदि बने हुए हैं। परन्तु दिगंबरों ने सूत्रसाहित्य छोड़ दिया, इसलिये सूत्रसाहित्य में जो महावीर चरित्र था उसकी उनको पर्वाह न रही और इधर वे केवलदर्शन ज्ञान का क्रमवाद नहीं मानते थे इसलिये उपयोग परिवर्तन की बिलकुल संभावना न थी, इन सब आपत्तियों से बचने के लिये महावीर जीवन के वे सब भाग - जिनमें महावीर किसीसे बातचीत उड़ गये । श्वेताम्बर साहित्य में धर्म का परिचय महावीर गौतम के संवादरूप में है जब कि दिगंबर साहित्य में गौतम और श्रेणिक के संवादरूप है । इसका कारण यह है कि महावीर सर्वज्ञ थे, बे प्रति करते हैं
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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