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________________ मतिज्ञान के भेद [ २५१ (१) है । जैसे, यह पुरुष मालूम होता है । अवग्रह के बाद संशय होता है जैसे यह स्त्री है या पुरुष ? इस संशय को दूर करके ईहा होता है जिसमें संशय की तरह अनिश्चित दशा नहीं होती, ज्ञान एक तरफ को झुकता है । संशय और ईहा में यह अन्तर माना जाता है। ५-विशेष चिन्होंने उसका ठीक ठीक निर्णय करना अवाय ६-जाने हुए अर्थ का विस्मरण न होना धारणा (३) है। ७-अवग्रह के दो भेद हैं, व्यञ्जनाग्रह (४) और अर्थावग्रह । दर्शन के बाद जो अव्यक्तग्रहण होता है वह व्यञ्जनावग्रह है उसके बाद जो व्यक्तग्रहण होता है वह अर्थावग्रह है। ८- चक्षु और मन से व्यञ्जनावग्रह नहीं होता, क्योंकि ये (१) अवगृहीतऽर्थ तद्विशषाकांक्षणमीहा । यथा पुरुष इत्यवगृहीते तस्य भाषावयोस्पादिविशेषेराकांक्षणमाहा । त० रा. ५-१५.२ । अवगृहीतार्थ विशेषाकांक्षणमीहा । प्र० न० त० । अवग्रहण विषयाकतो योऽर्थः अवान्तरमनुष्यत्वादि जाति विशेषलक्षणः तस्य विशेषः कर्णाटलाटादिभेदस्तस्याकांक्षणम्भवितव्यता प्रत्ययरूपतयाग्रहणाभिमुख्यमीहा इत्यभिधीयते । रत्नाकरावतारिका २८ । (२) विशेषनि नायाथा म्यावगमनमवायः । भाषादिविशेषनि नात्तस्य याथात्म्येन अवगमनमवायः । दाक्षिणात्योऽयं युवा गौरः इति वा । त. राजवार्तिक १-१५-३ इंहितविशेषनिर्णयोप्वायः । प्र.न. त० २.९ । (३) निहीतार्थाविरमृतिर्धारणा। १.१५-४ त० रा० । (४) व्यक्तग्रहणं अर्थावग्रहः अव्यक्तग्रहणं व्यचनावामहः । त० रा. १-१८.२ । सुसमत्वादिसूक्ष्मावबोधसहितपुरुषवत् । सिद्धसेनगाणिकृत तत्वार्थटीका
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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