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________________ केवली और मन [११९ मंखली गोसाल के साथ भी भगवान महावीर का आक्षेपपूर्ण वार्तालाप हुआ है । इस प्रकारके खंडनमंडन बिना बिचारके नहीं कहे जासकते। (ग) शब्दालपुत्रने अपने यहाँ ठहराने का भगवान महावीर को निमंत्रण दिया, तब उसके शब्द भगवान सुने हैं [१]। इससे मालूम होता है कि भगवान शब्द सुनते थे, अर्थात् कर्ण इन्द्रिय का उपयोग करते थे। ये तो थोड़े से नमूने है परन्तु सूत्रसाहित्य में प्रत्येक सूत्रमें महावीर के साथ वार्तालाप प्रश्नोत्तर आदि का विस्तृत वर्णन आता है, जो उनके इन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय उपयोग का सूचक है। प्रश्न-श्वेताम्बर साहित्य भले ही केवलियों के वार्तालापका प्रश्नोत्तर का, शास्त्रर्थ का वर्णन करता हो परन्तु दिगम्बर साहित्य में ऐसा वर्णन नहीं मिलता। उचर -इस निःपक्ष लेखमाला में किसी बत को सिर्फ इसीलिये अप्रामाणिक नहीं कहा जा सकता कि वह अमुक सम्प्रदाय की हे अथवा अमुक की नहीं है । कोई महापुरुष बिना वार्तालाप किये, बिना प्रश्नोत्तर किये, अपने विचारों का प्रचार करे, बिना विचार के देश देश में भ्रमण करे आदि, यह असम्भव है। यदि भगवान महावीर ये काम न करते तो श्वेताम्बरों को क्या जरूरत थी कि वे महावीर जीवन का ऐमा चित्रण करते ? (५) तएणं समण भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओ वासगस्स एयमद्वं पडिमुणेइ । उवासग ७-- ५९४ ॥
SR No.010099
Book TitleJain Dharm Mimansa 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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