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________________ जैनधर्म-मीमांसा wwwwww.www.wmmmmmmmmmxwww.marrmwmmmmmmmmmm घण्टे २०० मीलकी चालसे मोटरकार दौड़ाता है। यदि व्यवहारमें इतनी चालसे मोटरें दौड़ाई जाने लगें, तो प्रतिदिन हजारों मनुष्योंको प्राण देना पड़ें। फिर भी ऐसे रिकार्ड लानेवालोंकी प्रशंसा होती है, क्योंकि इससे मोटरकारकी गतिको उत्तेजना मिलती है । जिस दिशामें हमें जाना है उस दिशामें कितना आगे बढ़ा जा सकता है, इसका सक्रिय पाठ दुनियाको पढ़ाना बड़ा भारी काम है । दूसरी बात यह है कि ठण्ड, गर्मी, भूख, प्यास आदिके कष्ट मनुष्यको कभी न कभी सहना पड़ते हैं । उस समय हम अपनेको शान्त रख सकें इसके लिये भी ये तप आवश्यक हैं । जो लोग पूजा करानेके लिये ऐसे तप करते हैं वे तपका फल नहीं पाते; तथा जो लोग यह नहीं समझते कि इन तपस्याओंसे सुखकी स्थिरता बढ़ती है तथा प्रकृतिके विरुद्ध लड़नेकी शक्ति आती है, वे लोग भी तपका फल नहीं पाते । इन तपोंको संयम समझनेवाले भी भूलमें हैं । ये तो सिर्फ संयमका अभ्यास. करनेके लिये कसरतके समान हैं। ___ इससे भी अच्छा तप आत्मशुद्धि और सेवा है, जिसे कि अंतरंग तप कहा है । धर्मके किसी एक ही अंगपर जोर देना, उस द्रव्यक्षेत्र-काल-भावका फल है । इसका यह मतलब नहीं है कि जिस अंगपर बहुत दिनोंतक जोर दिया गया है, या जो रूप बहुत काल तक बना रहा है वही सब कुछ है। दूसरे अंग और दूसरे रूप भी हैं। उनका समयपर उपयोग करना भी आवश्यक है। यदि ऐसा न हो तो धर्म एकान्तधर्म और मिथ्याधर्म हो जाय, वह धर्म ही न रहे।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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