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________________ दर्शनाचारके आठ अङ्ग उसकी दृष्टिमें एक मुनिवेषी अमुनि भी मुनि है, सदाचारका ढोंग करनेवाला दुराचारी भी सदाचारी है। साधारण मनुष्यकी इस अज्ञानतासे कुछ दम्भी लोग स्वार्थका पोषण कर लेते हैं तो इससे 'हमें भी दम्भ करना चाहिये' यह विचार ठीक नहीं है क्योंकि दम्भका परिणाम अंतमें बुरा ही है, उससे समाजमें सुखकी वृद्धि नहीं होती । जनता दम्भीको दम्भी समझकर नहीं पूजती, वह अज्ञानसे दम्भीको पहिचान नहीं पाती है। ऐसी अवस्थामें जनता दयापात्र है। हमें उसकी चिकित्सा करना चाहिये, उसके घातकोंकी टोलीमें न मिल जाना चाहिये। असंयम आदिकी तरफ गिरते हुए मनुष्यको उपर्युक्त ढङ्गसे समझाना चाहिये तथा तदनुसार आचरण करके उसको धैर्य बँधाना चाहिये । इसके अतिरिक्त उसकी आपत्तिको दूर करनेकी कोशिश करना चाहिये। ___ कभी कभी अनुचित बन्धनोंके कारण या उसके ऊपर जबर्दस्ती अधिक बोझ लाद देनेके कारण मनुष्यका पतन होता है । ऐसी अवस्थामें उसके बन्धनको तोड़ देना या ढीला कर देना भी स्थितिकरण है । एक आदमी उपवास नहीं कर सकता किन्तु जबर्दस्ती उससे उपवास कराया जाता है । फल यह होता है कि वह चोरीसे खाता ह अथवा चोरीसे खानेका विचार करता है अथवा धर्मसे घृणा करने लगता है। ऐसे आदमीको उपवास न करनेकी छूट दे देना भी स्थितिकरण है। एक स्त्री विधवा हो जानेके बाद पूर्ण ब्रह्मचर्यसे नहीं रह सकती और यदि सामजिक नियम या और कोई दबाव . उसको जबर्दस्ती ब्रह्मचर्य पालनेको विवश करता है तो उसे पुनर्विवाहकी छूट
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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