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________________ २९४ जैनधर्म-मीमांसा a............ nonrmmarwaron .....norrow जाँच करनेकी योग्यता कहाँसे हो सकती है, इसलिये वे किसीको मा-बाप कैसे कह सकेंगे ? इसके अतिरिक्त दुनियाँके सैकड़ों व्यवहार विना परीक्षाके ही करना पड़ते हैं। · उत्तर-परीक्षाके विषयमें तीन बातें विचारणीय होती हैं: (क) वस्तुका मूल्य, (ख) परीक्षाकी सुसम्भवताकी मात्रा, (ग) परीक्षा न करनेसे लाभ-हानिकी मर्यादा। (क) सोना, चाँदी आदि बहुमूल्य वस्तुओंकी जाँच हम जितनी अधिक करते हैं, उतनी भाजी-तरकारीकी जाँच नहीं करते । अधिक मूल्यवान वस्तुकी अधिक जाँच करना पड़ती है । धर्म अथवा शास्त्र बहुत मूल्यवान है । उनपर हमारा लोक, परलोक और स्थायी कल्याण निर्भर है, इसलिये उसकी जाँच सबसे अधिक और सदा करते रहना चाहिये । अन्य सैकड़ों बातोंकी उतनी परीक्षाः आवश्यक नहीं है। (ख ) परीक्षा जितनी सुसम्भव हो उतनी ही करना चाहिये । बापकी जाँच करनेमें हमें पड़ौसी आदिके वचनोंपर ही विश्वास रखना पड़ता है और दूसरा कोई सरल उपाय हमारे पास नहीं है, जब कि शास्त्रकी परीक्षाके लिये विवेक-बुद्धिसे काम चल जाता है। (ग) जिसे हम पिता-रूपमें मानते हैं और जो हमें पुत्र समझता है, सम्भव है, वह पिता न हों तो भी उससे कोई नुकसान नहीं है; इसलिये अधिक जाँचकी आवश्यकता नहीं है। हाँ, जहाँ कोई विशेष झगड़ा उपस्थित होता है वहाँ माता-पिताकी भी जाँच की जाती है । यूरोपमें कई मुकद्दमे ऐसे हुए हैं जिनमें खूनकी जाँच करके यह निर्णय करना पड़ा है कि यह आदमी अमुक व्यक्तिको सन्तान
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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