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________________ दर्शनाचार के आठ अङ्ग २९३ उत्तर – यदि परीक्षा किये विना शास्त्रोंको माना जाय तो संसार में सच्चे और झूठे सभी तरहके शास्त्र हैं, तब सभीको मानना पड़ेगा । यदि कहा जाय कि अपना जन्म जिस सम्प्रदाय में हुआ हो उसे ही सच्चा मानना चाहिये तो भी मिथ्यासम्प्रदाय मानना पड़ेगा, क्योंकि मिथ्यासम्प्रदाय में भी तो लोगों का जन्म होता है । दूसरी बात यह है कि सम्प्रदाय सच्चे होनेपर भी उनके सब शास्त्र सच्चे नहीं होते । हर-एक सम्प्रदाय में कुछ न कुछ सचाईका अंश होता है और बहुत-सा मिध्यात्व भी होता है । अगर हम सच्चे और झूठे सभी को मानने लगेंगे तो अकल्याण कर बैठेंगे । इसलिये अपना सम्प्रदाय चाहे सच्चा हो चाहे झूठा; उसके शास्त्रोंकी परीक्षा करना तो आवश्यक ही रहेगा । 'शास्त्रकार में जितनी योग्यता होती है उतनी ही परीक्षक में भी होना चाहिये' यह नियम नहीं है । अगर हम स्वादिष्ट भोजन तैयार नहीं कर सकते तो इसका यह मतलब नहीं है कि हम उसके स्वाद की जाँच भी नहीं कर सकते हैं । गुरुत्वाकर्षणके सिद्धान्तकी खोज एक आदमीने की परन्तु उसकी जाँच तो हज़ारोंने की और जब उन्होंने उसे ठीक पाया तब माना । ' आविष्कारक या निर्माता के बराबर उसके कार्यकी जाँच करनेवाले में भी बुद्धि होना चाहिये ' यह नियम नहीं है । इस प्रकार शास्त्र अपरीक्षकोंके कामका नहीं है परन्तु ऐसे परीक्षकोंके कामका है जो स्वयं शास्त्रनिर्माता तो नहीं हैं किन्तु परीक्षक हैं । प्रश्न – इस तरह परीक्षाको अगर महत्त्व दिया जाय तो दुनियाँका व्यवहार नष्ट हो जाय । हमें अपने मा-बाप की परीक्षा करके उन्हें मा-बाप मानना पड़ेगा । छोटे छोटे बालकों में मा-बाप की 1
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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