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________________ दर्शनाचार के आठ अङ्ग तो पवित्रता के साथ पेट तक चले जाते हैं, परन्तु जीवित और पवित्र मनुष्य के स्पर्शमात्र से चौका खराब हो जाता है ! २८३ चौकापंथ के समान और भी कुछ पंथ है जैसे- गीले कपड़े पहिनकर रसोई बनाने का पंथ, नग्न रहकर रसोई बनानेका पंथ, आदि । इस विषयके रिवाज एकत्रित किये जायँ तो एक मोठी पुस्तक बन सकती है: यहाँ सिर्फ संकेत किया गया है । (ङ) एक तरफ मृदुताके कारण ये बेहड़े नियम बने तो दूसरी तरफ उनके पालनकी कठिनाईने विचित्र अपवादोंको जन्म दिया । उदाहरणार्थ -- यात्रा में चौकेका नियम कठिन हो गया तो वीमें पकी चीजको चौकाके बाहर ले जाना निर्दोष माना गया । चौका वगैरह के नियम प्रासुकताकी दृष्टिसे तो कुछ कामके नहीं हैं । स्वास्थ्य की दृष्टिसे इसका कुछ उपयोग किया जा सकता था सो घृतपत्रके अपवादने स्वास्थ्यको बनानेकी अपेक्षा बिगाड़ा ही है । श्रीमानोंने कुछ श्रीमत्ता प्रदर्शनके लिये इसमें दूधका संयोग और कर दिया । पानीकी अपेक्षा दूधकी गूनी हुई पूड़ी पवित्रता के लिहाज - से अच्छी समझी गई, मानो दूध पानीकी अपेक्षा अधिक पवित्र हो ! मर्यादाकी दृष्टिसे दूध पानीकी अपेक्षा अधिक पवित्र नहीं है उत्पत्तिकी अपेक्षा पानी ही पवित्र है, दूधका स्रोत तो मांस के पिण्डमेसे है । खैर, यह अपवाद तो बिल्कुल बेहूदा है परंतु एक दूसरा अपवाद भी है। जो बड़े आदमी दूसरी जातिके आदमीकेद्वारा बनाई गई रसोई नहीं खा सकते, किन्तु रसोई के लिये नौकर रखना चाहते हैं, उनके लिये एक दूसरा अपवाद बना कि जब तक नमक न पड़े तबतक कोई भी रसोई बना सकता है । मानो नमकने ही सारी
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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