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________________ जैनधर्म-मीमांसा वह सोचता है कि धन, सम्पत्ति आदि मेरे हाथसे निकल जायगी तो दूसरे के हाथमें जायगी। अपने हिस्से में अधिक सम्पत्ति रखनेको वह उचित तो समझता ही नहीं है, इसलिये अगर सामाजिक रचनाके कारण उसके हाथपर सम्पत्तिका बोझ आया है तो वह धरोहर आदिकी तरह उसकी रक्षा करता है और चले जानेसे. डरता नहीं है । २६० प्रश्न - सम्यग्दृष्टि अगर इतना उदार होता है तब तो अगर कोई किसीकी चोरी करेगा तो उसे वह न रोकेगा। क्योंकि चोरीसे वह दूसरे के हाथमें जाती है जिसे कि उसकी जरूरत है । इस तरह सम्यग्दर्शन चोरीका समर्थक कहलाया । उत्तर—सम्यग्दृष्टि अपनी सहन-शक्ति और विश्व - प्रेमके कारण सम्पत्तिके छिनने से नहीं डरता ; वह यह भी चाहता है कि सभी प्राणियोंको अपनी योग्यता और आवश्यकता के अनुरूप इष्ट सामग्री मिले | परन्तु इसके लिये वह चोरीका अनुमोदन नहीं कर सकता । क्योंकि चोरीसे संपत्तिका ठीक ठीक विभाजन नहीं होता। इससे गरीब और साधारण परिस्थितिके लोग ही अधिक लुटते हैं, धनवान लोग तो तलवार बन्दूक आदिके प्रबन्धसे लुटनेसे बचे रहते हैं । दूसरी बात यह है कि इससे एक क्षण भी किसीको चैन न मिलेगी । स्वयं चोरको भी इस बातका डर रहेगा कि कोई मेरी चोरी न कर जाय । इसलिये चौर्य - कर्मका तो सम्यग्दृष्टि-विरोधी होता है क्योंकि यह समष्टिगत दुःखका कारण है। फिर भी उसे सम्पत्तिके चुराये जवा भय नहीं होता । इसका कारण यह है कि उसका जीवन निर्लिस, विश्वप्रेममय और सहनशील है । सम्पत्ति छिनती है इसलिये
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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