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________________ २३६ जैनधर्म-मीमांसा ANNAMAAANAAL VANAAAAAAA यह है कि निमित्तके साथ कार्यका अविनाभावx सम्बन्ध सिद्ध हो जानेसे उपादानका अभाव नहीं कहा जा सकता। उपादान अगर अदृश्य हो तो भी उसे मानना पड़ता है। हमें जो वेदन या अनुभव होता है उसका निमित्त कारण मस्तिष्क है क्योंकि मस्तिष्कके मैटरमें जितने रूप, रस, गंध, स्पर्श आकार आदि गुणधर्म हैं उनमेंसे चैतन्य किसीका भी विकार नहीं है क्योंकि चैतन्य किसी रंग, स्वाद आदिका नाम नहीं है । स्नायु-प्रक्रियासे हम वेदन या अनुभवके निमित्त कारणोंका परिज्ञान कर सकते हैं किन्तु उपादान कारणका हमें पता नहीं लग सकता । लेकिन यह नहीं कह सकते कि वहाँ कोई उपादान कारण नहीं है, उपादान कारण है तो, परन्तु वह अदृश्य है । अदृश्य होनेसे उसका अभाव नहीं माना जा सकता। ___ अनेक पदार्थ ऐसे हैं कि जिनके विषयमें हम ठीक ठीक कुछ नहीं जानते फिर भी उनके कार्यका अनुभव करते हैं। उदाहरणार्थ विद्युत् । विद्युत् क्या है इसका वैज्ञानिक जगत् कुछ भी उत्तर नहीं दे पाया है फिर भी विद्युत्के कार्य प्रकाश, गति आदिका हमें परिज्ञान होता है और उससे हम काम भी लेते हैं । इसी प्रकार सुख, दुःख, संवेदन या अन्य-पदार्थ-परिज्ञानका उपादान आत्मा क्या है, इसके विषयमें हम कुछ न कह सकें फिर भी वह एक जुदा पदार्थ है यह हमें मानना पड़ता है । जब कि चैतन्य मस्तिष्कके गुणका रूपान्तर नहीं है (भले ही मस्तिष्कके गुण उसमें निमित्त होते हों ) तो वह अन्य किसीका रूपान्तर है यह मानना पड़ता है। जिसका रूपान्तर है ___x एकके होनेपर दूसरेका होना और न होनेपर न होना इस नियमको अविनाभाव कहते हैं।
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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