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________________ सम्यग्दर्शनका स्वरूप प्रश्न – इन तीन प्रकारके प्राणियोंसे अतिरिक्त एक चौथी श्रेणी भी है, जो इस नाटकको या संसारको छोड़ कर चल देते हैं, मुनि हो जाते हैं, जविन्मुक्त हो जाते हैं उन्हें आप किस श्रेणीमें रक्खेंगे ! क्या वे सम्यग्दृष्टि नहीं हैं ? यदि हैं तो वे खेल समझकर जीवनका खेल क्यों नहीं खेलते ? कायरतासे संसार के उत्तरदायित्वको छोड़कर क्यों भाग जाते हैं ? २२५ 1 उत्तर – जो कायरतासे उत्तरदायित्व छोड़ कर मुनि होते हैं वे न तो मुनि हैं न सम्यग्दृष्टि । सम्यग्दृष्टि जीव उत्तरदायित्वका त्याग नहीं करते । वे मुनि होते हैं परन्तु मुनिजीवनका अर्थ अकर्मण्यता नहीं है, न जीवनके नाटकको छोड़ देना है । वे भी नाटक ही खेल रहे 1 हैं। सिर्फ उनने पार्ट बदल दिया है । नाटकमें कौन पात्र किस लायक है इसका विचार तो करना ही पड़ता है । कई पार्ट ऐसे होते हैं जिन्हें हरएक नहीं कर सकता, जिनमें शारीरिक हलन चलनकी अपेक्षा सूक्ष्म क्रियाओं की अधिक आवश्यकता होती है । अविरत सम्यग्दृष्टिका पार्ट सरल है और निम्न श्रेणीका है । मुनिका पार्ट ज़रा उच्च श्रेणीका है । परन्तु दोनों ही नाटक हैं । मुनि तो मुनि, जीवमुक्त अरहंत भी नाटक खेल रहे हैं । जब तक जीव इस शरीर में है तब तक वह संसारका नाटक खेल रहा है इसमें सन्देह नहीं । यह बात दूसरी है कि उसके पार्टीमें श्रेणी-भेद हो । इस तरह अविरत सम्यग्दृष्टिसे लेकर अरहन्तं - अवस्था तक सभी जीव एक तरहसे कर्मयोगी हैं । हरएक प्राणी कर्तव्यका पालन नाटक समझकर करे । नाटकका पात्र अगर नाटकको नाटक समझकर छोड़ दे तो उसका अनाटकीय जीवन १५
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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