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________________ - सभ्य सम्यग्दर्शनका स्वरूप २२३ सम्यग्दृष्टि उसीको कर्तव्य समझकर करता है। मोही आदमी तो धोखा दे सकता है किन्तु कर्तव्यशील आदमी धोखा नहीं दे सकता। क्योंकि मोही व्याक्त तो अविवेकी और स्वार्थी होता है, अविवेकके कारण या स्वार्थमें धक्का लगनेके कारण वह अवसरपर कर्तव्यका भी त्याग करता है और अकर्तव्यको भी अपनाता है जब कि सम्यग्दृष्टि अपने कर्तव्यको नहीं छोड़ सकता। इसलिये प्रेमके क्षेत्रमें भी मिथ्यादृष्टिकी अपेक्षा सम्यग्दृष्टि अधिक विश्वसनीय है। प्रश्न-सम्यग्दृष्टि कर्तव्यच्युत भले ही न होता हो, परन्तु उसके व्यवहारमें एक प्रकारकी नीरसता या उपेक्षादृष्टि अवश्य रहेगी जिससे लोगोंको असंतोष हो। उसका रूखा व्यवहार विश्वप्रेम, वात्सल्य आदि गुणोंका विघातक ही सिद्ध होगा। उत्तर-अगर हम किसी नाट्यशालामें जाते हैं तो नाट्यशालाको या नाटक कंपनीका अपनी नहीं समझने लगते फिर भी नाटक तो दिलचस्पीसे देखते हैं । अगर नाट्यशालामें आग लग जाय तो हमें सिर्फ इतना ही दुःख होगा कि खेलका मज़ा बिगड़ गया। नाट्यशालाके मालिक-सरीखा ऐसा दुःख न होगा कि मैं लुट गया । सम्यग्दृष्टि होनेसे किसीकी सहृदयता नष्ट नहीं हो जाती। सिर्फ उसका मोह नष्ट होता है । सम्यग्दृष्टि के लिये नाटकके पात्रका उदाहरण दिया है । सच्चा खिलाड़ी नाटकको नाटक समझते हुए भी इस बातको भुला देता है कि यह नाटक है। अनेक दर्शक नाटकमें किसी पात्रको दुःखी होते देखकर रोने लगते हैं । क्या वे यह नहीं समझते कि यह नाटक है ? फिर रोते क्यों हैं ? इससे मालूम होता है कि प्राणीके भीतर एक ऐसी वृत्ति है जिसे हम शब्दोंसे कहने में असफल रहते
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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